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मार्सेल प्रूस्त : स्मृति का गद्यकार

“…ख़ैर, प्रूस्त के बाद लिखने के लिए क्या ही बचता है!”
(Virginia Woolf, Letters, Vol-2)

वर्जीनिया वुल्फ़ की यह टिप्पणी, मानव चेतना, स्मृति और समय के बारे में मार्सेल प्रूस्त के लेखन की उस सिफ़त को रेखांकित करती है जिसके बाद कुछ लिखे जाने के लिए बहुत कम ज़मीन बचती है। प्रूस्त ने साहित्यिक अभिव्यक्ति के लिए न सिर्फ़ एक मानक स्थापित किया, बल्कि उसके समकालीनों और उत्तराधिकारियों को भी उपन्यास की संभावनाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया।

मार्सेल प्रूस्त का उपन्यास ‘इन सर्च ऑफ़ लॉस्ट टाइम’ फ़्रांस में 13 वर्षों की अवधि में 7 खंडों में प्रकाशित हुआ। उपन्यास के पहले खंड के प्रकाशन पर लेखक अनातोले फ़्रांस ने टिप्पणी कर कहा—“जीवन बहुत छोटा है और प्रूस्त बहुत विस्तृत”। यह विश्व का सबसे लंबा उपन्यास माना जाता है लेकिन इसकी महानता इसकी जिल्दों और इसके कई लाख पन्नों में लिखे होने में निहित नहीं है। कथा-कविता का देवता उनके ब्योरे में बसता है। प्रूस्त के यहाँ ब्योरे-ही-ब्योरे हैं किंतु उनकी गति एकटक है। लंबे प्रवाहपूर्ण वाक्य, आत्मचिंतनपरक भाषा है लेकिन उनमें दार्शनिक रूखापन नहीं है। आत्मकथात्मक प्रतीत होते इस उपन्यास के खंड पाँच (The Fugitive) के अलावा कहीं भी कथावाचक या क़िस्सागो का नाम ज़ाहिर नहीं होता और न ही ऐसा कोई इशारा कहीं मिलता है। प्रूस्त के यहाँ स्मृति के भेद हैं। वह स्मृति के गद्यकार हैं। यह आलेख उपन्यास के इन्हीं पहलुओं पर बात करता है।

उपन्यास

प्रूस्त और जॉयस ने पश्चिमी उपन्यास की शिल्प-विधा को अंधी गली मानकर छोड़ दिया था। वे एक ऐसी आत्मसजग ऐतिहासिक चेतना की चरम-सीमा पर पहुँचकर अपनी स्मृति के शाश्वत समय की तरफ़ मुड़े थे, उन्नीसवीं शती की बुर्जुआ, ऐतिहासिक क्रम को छोड़कर उन्होंने उपन्यास की विधा को तोड़ा था।

(निर्मल वर्मा, संस्कृति, समय और भारतीय उपन्यास)

निर्मल वर्मा प्रूस्त के जिस ‘ऐतिहासिक क्रम’ को छोड़कर उपन्यास विधा को तोड़ने की बात कर रहे हैं, वह प्रूस्त का शिल्प है। उपन्यास के तीसरे खंड में कथावाचक का जिससे आकर्षण और मोहभंग होता है वह सिर्फ़ एक जीवनशैली या सामाजिक रवैया और ढाँचा नहीं है।

प्रूस्त जब लिख रहे थे, तब पश्चिमी उपन्यास—विक्टोरियन और रोमांटिक शैली के ढलान के दौर से गुज़र रहा था। वर्जीनिया वुल्फ़ ने प्रूस्त को पढ़ने से पहले ही उनके प्रभाव को महसूस कर लिया था, उन्होंने कहा—“आस-पास सभी प्रूस्त को पढ़ रहे थे”। दो दशकों के भीतर प्रूस्त, जेम्स जॉयस और फ़ॉकनर ने Stream of Consciousness शैली को उपन्यास में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया।

In Search of Lost Time एक Bildungsroman है। इसीलिए खंड-दर-खंड इसमें कथावाचक के जीवन में आते हुए बदलावों और जीवन के विकास की कहानी है, लेकिन यह लीनियर नहीं है। उपन्यास इतना विस्तृत है कि एक ही किरदार के बारे में भिन्न खंडों में भिन्न राय बन सकती है। जिन्होंने इस उपन्यास को फ़्रेंच में पढ़ा है—वह इसके शीर्षक में इस्तेमाल हुए शब्द ‘पेर्दू’ से आशय ‘बर्बाद’ लगाते हैं, जहाँ केवल ‘खोए समय की खोज’ नहीं बल्कि ‘बर्बाद’ समय की खोज भी है। यह ‘बर्बाद’ समय प्रूस्त के लिए ‘कला’ का भी प्रश्न है, क्योंकि कथावाचक इन खंडों में बचपन की स्मृतियों से लेकर फ़्रांसीसी अभिजात की भव्य जीवनशैली (The Guermantes Way) में जीवन का सुख और अर्थ ढूँढ़ता है तो कभी असफल संबंधों में।

संपूर्ण उपन्यास का समापन ‘Time Regained’ में होता है। इस अंतिम खंड में कथावाचक प्रथम विश्व युद्ध के दौरान के पेरिस के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य का चित्रण करता है, जहाँ युद्ध ने सामाजिक संरचना को हिला दिया है। पात्रों की स्थिति, उनके रिश्ते और सामाजिक दर्जे सब बदल चुके हैं। इसके बाद कथावाचक गुएर्मान्त परिवार के एक आयोजन में जाता है, जहाँ एक साधारण-सी घटना—पत्थर से ठोकर लगने पर वेनिस की याद आना—उसके भीतर एक साहित्यिक जागरूकता पैदा करती है। प्रूस्त संपूर्ण उपन्यास और खंडों में कभी प्रत्यक्ष और कभी इशारों से इस सवाल से टकराते हैं कि उनकी ‘कला’ क्या है? अंतिम दृश्य में कथावाचक एक आयोजन में पात्रों से दोबारा मिलता है, जो समय की मार से थके, बूढ़े और बदल चुके हैं। कथावाचक इन्हीं के बारे में लिखता है;

“... I would therein describe men, if need be, as monsters occupying a place in Time infinitely more important than the restricted one reserved for them in space, a place, on the, contrary, prolonged immeasurably since, simultaneously touching widely separated years and the distant periods they have lived through — between which so many days have ranged themselves — they stand like giants immersed in Time.”

(Proust, In Search of Lost Time, Vol-6, 451)

प्रूस्तीय-स्मृति

...It is plain that the truth I am seeking lies not in the cup but in myself. The drink has called it into being, but does not know it, and can only repeat indefinitely, with a progressive diminution of strength.

(Proust, In Search of Lost Time, Vol-1, Swann's Way-61)

उपरोक्त उद्धरण प्रूस्त प्रशंसकों और उसके पाठकों के बीच में ‘मादलेन क्षण’ (A madeleine moment) के नाम से जाना जाता है। उपन्यास का यह हिस्सा ही स्मृति और प्रूस्त-स्मृति में अंतर पैदा करता है, क्योंकि एक सामान्य अर्थ में उपन्यास के प्रथम भाग (Swann's Way) की पहली पंक्ति, नायक के बचपन की स्मृति से शुरू होती है कि वह “लंबे समय तक जल्दी सोने जाया करता था”। यह पँक्ति उपन्यास की एक भावभूमि तो स्थापित करती है लेकिन यह बीते हुए का ख़ाका बस है।

साधारण स्मृति किसी घटना या तथ्य को सचेत प्रयास से याद करने की प्रक्रिया से पैदा होती है। प्रूस्त और स्मृति संबंधी अध्ययनों के संदर्भ में सिद्धांतकारों और दार्शनिकों ने इसे इच्छा-स्मृति (Voluntary memory) कहा है। वहीं, प्रूस्तीय स्मृति, अनिच्छा-स्मृति (Involuntary memory) तथा अचानक जैसे स्वाद, गंध या ध्वनि से उत्प्रेरित हो सकती है। ‘मादलेन-क्षण’ से आशय ऐसे ही ‘इंद्रिय संकेत’ से है—जब नायक को उसकी माँ ने एक ‘मादलेन’ केक खाने के लिए दिया और चाय में डुबोकर केक को खाते ही उसके सामने बचपन की उन घटनाओं का ख़ाका खुल गया जिन्हें वह प्रयास से भी याद नहीं कर सकता था। वाल्टर बेन्यामिन अपने निबंध ‘On Some Motifs in Baudelaire’ में लिखते हैं;
प्रूस्त तुरंत इस अनिच्छा स्मृति को इच्छा स्मृति—जो बुद्धि की सेवा में प्रस्तुत रहती है—से भिड़ा देता है। उसकी कृति के शुरुआती पन्ने इस रिश्ते को स्पष्ट करने से भरे हुए हैं।

मादलेन केक को चाय में डुबोकर वही अनुभूति दोहराने की कोशिश में क़िस्सागो को एहसास होता है कि स्मृति को कृत्रिमता से यूँ पैदा नहीं किया जा सकता। स्मृतियों में सदैव एक समग्रता नहीं है। वह कभी उन्माद हैं, कभी केवल धुंध। सच्ची, प्रूस्तीय स्मृति सहज और अनायास ही प्रकट होती है। वह काल सापेक्ष हैं क्योंकि वह स्मृतियाँ हैं लेकिन वस्तु सापेक्ष नहीं इसीलिए मादलेन केक एक उद्दीपन है, शर्त नहीं।

प्रूस्त पहले ही भाग में इस तरफ़ इशारा करते हैं; ख़ासकर जो वह कोष्ठक में कहते हैं—

The past is hidden somewhere outside the realm, beyond the reach of intellect, in some material object (in the sensation which that material object will give us) of which we have no inkling.

(In Search of Lost Time, Swann's Way, Vol:1-60)

स्मृति का अनुभव

For the important thing for the remembering author is not what he experienced, but the weaving of his memory, the Penelope work of recollection.

(Walter Benjamin, Image of Proust, Illuminations-60)

वाल्टर बेन्यामिन, स्मृति बुनने के इस प्रूस्तीय शिल्प को ‘पिनेलोपीय’ कहते हैं। ‘पिनेलोप’ होमर के ग्रीक महाकाव्य ‘द ओडिसी’ में ओडीसियस की पत्नी थी। पति की नामौजूदगी में जब उसके सामने विवाह प्रस्ताव आए तो उन्हें टालने के लिए, पिनेलोप ने शर्त रखी कि जब तक वह एक कपड़े की सजावटी सिलाई-बुनाई पूरी नहीं कर लेतीं, वह विवाह नहीं करेगी। लेकिन हर रात, वह चुपके से उस कपड़े को उधेड़ देती, ताकि वह कभी पूरा न हो।

इस तरह यहाँ स्मृति सिर्फ़ याद करने की नहीं, बल्कि भूलने और फिर से खोजने की प्रक्रिया है। याद और विस्मृति एक साथ चलती हैं और यही प्रक्रिया उपन्यास को महज़ आत्मकथात्मक वृत्तांत से कहीं अधिक बना देती है। प्रूस्त के यहाँ प्रयासजन्य स्मृति का रूमान नहीं है, जहाँ स्मृति आधारित प्रतिजीवन की रचना की जा रही हो। इसीलिए बेन्यामिन आगे लिखते हैं—

We know that in his work Proust did not describe a life as it actually was, but a life as it was remembered by the one who had lived it.

प्रूस्त ने उपन्यास में जीवन को उसके ठोस, ऐतिहासिक रूप में चित्रित नहीं किया, बल्कि स्मृति द्वारा पुनर्निर्मित जीवन को दिखाया। यह अतीत का पुनर्सृजन है, जहाँ घटनाएँ वैसे नहीं लौटती जैसी वे घटी थीं, बल्कि वैसी लौटती हैं—जैसा स्मृति उन्हें गढ़ती है। 

प्रूस्त को क्यों पढ़ा जाए?

“…हममें से किसी के पास समय नहीं था कि हम अपने जीवन के असली नाटकों को जी सकें, जो हमारी क़िस्मत में लिखे थे। यही चीज़ हमें बूढ़ा बनाती है सिर्फ़ यह। हमारे चेहरों की झुर्रियाँ और सलवटें उन विराट उन्माद, व्यसनों और अंतर्दृष्टियों की ओर संकेत करती है, जो हमसे मिलने आए थे और हम घर पर नहीं थे।”

—बेन्यामिन, इमेज ऑफ़ प्रूस्त

पुस्तकें क्यों पढ़ी जाना चाहिए, इसके कुछ तय जवाब हैं। इन जवाबों में न नया लोहा जुड़ता है, न ज़ंग लगती है। सभी जवाब स्वीकार्य हैं और सभी रद्द किए जा सकते हैं। यहाँ फ्रेम हैं, पुस्तक पढ़ने और पढ़ते हुए दिखने का एस्थेटिक्स है। ऐसे में प्रूस्त पर अधिकतम बातों की खपत अतीतमोह और पुस्तक पढ़ने के सौंदर्य के इर्द-गिर्द हो जाती है। बेन्यामिन ने कहा है कि जिस स्थिति में यह कृति बनी, वह कोई आदर्श जीवन और स्थिति नहीं थी।  

प्रूस्त ने मानवीय कमज़ोरियों और मूर्खताओं पर बहुत सभ्य और व्यवस्थित ढंग से लिखा। दिलफ़रेब बुनावट लिए हुए उसके लंबे वाक्य सबसे अधिक मामूली दिखने वाले प्रसंगों, विडंबनाओं और वस्तुओं के सौंदर्य को एक ही निष्ठा और गहनता से वर्णित करते हैं। उसमें ऊब, ईर्ष्या, कामना है तो जीवनशैली, संगीत (Vinteuil Sonata) और इमारतों-सड़कों के भी लंबे-लंबे दिलचस्प विवरण भी हैं। इतने विस्तृत फलक वाले उपन्यास में गति के लिए कथा-निर्भरता नहीं है। बहुत सारे किरदारों के मंतव्य आगे खंडों में खुलते हैं लेकिन इन खुलासों में सनसनी नहीं है। प्रूस्त की यह सतर्कता और बारीक़ी कोई सांस्कृतिक देय या सलाहियत नहीं है, क्योंकि एक ही समय में अपने उपन्यास में वह इस ‘फ़्रांसीसी सोफिस्टिकेशन’ से मुक्त भी हो रहे हैं।

प्रूस्त को पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि वह परिचित की अजनबियत न सिर्फ़ उद्घाटित करते हैं, बल्कि उसे पुनर्सृजित करते हैं। यह समय और वस्तुओं में निहित किसी तरह का ट्रांसडेंटलिज़्म या आध्यात्मिक आयाम नहीं है। यहाँ सुखजन्य वीरान है, उसके आधिक्य की समीक्षा है। वह, उन्माद की हद तक सुख के प्रतीक्षक हैं लेकिन वस्तुओं और अनुभवों के दोहराव की भंगुरता के प्रति सतर्क हैं। प्रूस्त का उपन्यास उन अनुभवों, वस्तुओं और स्मृतियों का एक भवन है जिनकी विशिष्टता उनके अप्रासंगिक और मामूली होने में है।

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