Font by Mehr Nastaliq Web

नवीन सागर को याद करेंगे कवि-प्रशंसक-प्रियजन

इस शुक्रवार यानी 27 सितंबर 2024 की शाम हौज़ ख़ास विलेज (नई दिल्ली) में हिंदी के एक अनूठे कवि-लेखक नवीन सागर [1948-2000] की स्मृति में एक रचना-समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस समारोह में रामकुमार तिवारी और शम्पा शाह नवीन सागर की रचनाओं पर बात करते हुए उनसे जुड़े अपने संस्मरण साझा करेंगे। नवीन सागर की कुछ चुनिंदा कविताओं का पाठ करेंगे—अविनाश मिश्र और अपनी-अपनी कविताओं का पाठ करेंगे—देवी प्रसाद मिश्र, शायक आलोक, सौरभ अनंत, अखिलेश सिंह, अंकिता शाम्भवी।

समादृत कवि-कथाकार उदय प्रकाश के शब्दों में कहें तो नवीन सागर ने जीवट भर और जीवन भर ‘सबवर्सिव’ काम किया। नवीन सागर के तीन कविता-संग्रह—’नींद से लंबी रात’ (आधार प्रकाशन, प्रथम संस्करण : 1996), ‘जब ख़ुद नहीं था’ (कवि प्रकाशन, प्रथम संस्करण : 2001), ‘हर घर से ग़ायब' (सूर्य प्रकाशन मंदिर, प्रथम संस्करण : 2006)—प्रकाशित हुए; लेकिन दुर्भाग्य से अब लगभग सब अनुपलब्ध हैं। उन्होंने बच्चों के लिए भी लेखन किया और इससे बाहर भी उनकी रचनात्मक सक्रियता के कई आयाम हैं, जिनसे हिंदी संसार का बहुलांश अभी परिचित ही नहीं है। इससे हमारा परिचय नवीन सागर के निकट रहे व्यक्तित्वों से ही बातों-बातों में कभी-कभार होता रहता है। 

नवीन सागर की मृत्यु के कुछ वर्ष बाद कथा-साहित्य की महत्त्वपूर्ण मासिक पत्रिका ‘कथादेश’ (नवंबर-2007) ने उन पर अपना एक अंक केंद्रित किया था। यह अंक नवीन-प्रसंग में बेहद यादगार कहा जा सकता है। इसका अतिथि संपादन सुपरिचित कवि-लेखक रामकुमार तिवारी ने किया। इसके बावजूद नवीन सागर के प्रति एक बेरुख़ी सतत रही आई है। लेकिन ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने नवीन सागर को एक हद तक पुन: नवीन किया। उन्हें नए चाहने वाले मिले और उनकी संख्या में सतत इज़ाफ़ा जारी है। 

‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ की सूचना सार्वजनिक होने के बाद इस प्रयत्न का जिस तरह स्वागत हुआ है, वह बेहद उत्साहजनक है। इस प्रसंग में कुछ टिप्पणियाँ ध्यान देने योग्य हैं : 

उन्होंने अपने आख़िरी समय में माँ से कहा था कि मेरा लिखा किसी को पढ़ाना नहीं। मैं अब भी सोचती रहती हूँ कि असीम प्रेम में डूबे एक बहुत प्यारे इंसान को अपने आख़िरी समय में बस यही कहना ज़रूरी लगा था? उन्हें कुछ और याद नहीं आया होगा?? इस निर्मम संसार में एक कवि यह कहकर चला गया कि मेरा लिखा किसी को पढ़ाना नहीं… यह बात स्मरण आते ही मेरा हृदय पीड़ा के सबसे गहरे समंदर में डूबने लगता है। कितनी यातनाओं के पुल पार करके वह वहाँ पहुँचे होंगे कि बस ये भर कह पाए...

 समता सागर,
सुपरिचित कलाकार और नवीन सागर की पुत्री 

~~

सिर्फ़ इसी मर्म पर मनन नहीं होता। बाकी सब दाएँ-बाएँ घुमाव चलता है। उन्होंने न सिर्फ़ ये कहा बल्कि ख़ुद उनकी कविताएँ भी क्या इसी मर्म की टीस नहीं हैं! ‘नींद से लंबी रात’, ‘जब ख़ुद नहीं था’, ‘हर घर से गायब’... ये शीर्षक ख़ुद क्या यूँ धुएँ में उड़ाने देने के थे? एक वर्ग उन्हें पढ़ने से दूर रहा, एक वर्ग आलोडित। मगर इस दोनों तरफ़ के उत्साह के ऊपर उस मर्म पर कथित संवेदनशील रचनाकार कैसे सूखे रह जाते हैं कि ये इंसान ऐसा क्यों कहता है शीर्षक में, या कविता में—‘जिसने मेरा घर जलाया...’ अब वे अपनी मार्मिकता में सुग्राह्य हो गए हैं तो ऐसा क्या चरित्र-परिवर्तन हमारा हो गया है!   

 अनिरुद्ध उमट,   
सुपरिचित कवि-गद्यकार और नवीन सागर के अभिन्न मित्र 

~~

नवीन सागर कहते थे : “मैं संतूर नहीं बजाता—अब नहीं बजाता तो नहीं बजाता।’’ उनके जीवन को याद करते हुए जिस संतूर का ख़याल हमें आता है, वह उन्होंने नहीं बजाया। और नहीं बजाया तो नहीं बजाया। गृहस्थ जीवन की कठिनाइयों का सामना भी उन्होंने एक कवि की तरह ही किया। सिपाहियों को तमग़े नहीं मिलते। वे या तो मारे जाते हैं या गुमनाम होकर रिटायर हो जाते हैं।

— संजय चतुर्वेदी,   
सुपरिचित कवि  

~~

स्मृतिमुक्त समय में स्मृति-संयोजन बहुत ज़रूरी है। कविता को कविताओं से जोड़कर याद करने से अच्छा स्मृति-प्रवाह कुछ नहीं हो सकता है।

— रामाज्ञा शशिधर,   
सुपरिचित कवि  

~~

नवीनोचित परिकल्पना। शुभकामनाएँ।

भोपाल में मित्रगण कहते हैं—

नींद से लंबी रात है
नवीन में कुछ बात है।

इस ‘कुछ बात' पर बात होना अच्छा है।

— अरुण आदित्य,   
सुपरिचित कवि  

~~

शुभकामनाएँ! बेहतर हो आगे नवीन सागर जी की कविताओं पर कोई किताब भी निकाली जाए या उन पर कुछ संस्मरण भी सामने किए जाएँ।

— हरे प्रकाश उपाध्याय,   
सुपरिचित कवि-लेखक-संपादक 

~~

मैंने नवीन सागर को पहली बार ‘इंडिया टुडे’ की साहित्य वार्षिकी में पढ़ा था। बहुत अलग छाप बनी उनकी रचनाओं और जीवन की छनकर आते प्रसंगों से। ऐसा लग सकता है कि उनकी चर्चा कम होती गई, लेकिन वह पाठकों के बीच में हमेशा मौजूद रहे हैं।

— सोमप्रभ,   
नई पीढ़ी के कवि-गद्यकार

~~~

नवीन सागर की कविताएँ यहाँ पढ़िए : नवीन सागर का रचना-संसार 

‘नवीन सागर स्मृति रचना समारोह’ का आमंत्रण-पत्र यहाँ देखिए : 

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

23 अगस्त 2024

उन सबके नाम, जिन्होंने मुझसे प्रेम करने की कोशिश की

मैं तब भी कुछ नहीं था, और आज भी नहीं, लेकिन कुछ तो तुमने मुझमें देखा होगा कि तुम मेरी तरफ़ उस नेमत को लेकर बढ़ीं, जिसकी दुहाई मैं बचपन से लेकर अधेड़ होने तक देता रहा। कहता रहा कि मुझे प्यार नहीं मिला, न

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

18 अगस्त 2024

एक अँग्रेज़ी विभाग के अंदर की बातें

एक डॉ. सलमान अकेले अपनी केबिन में कुछ बड़बड़ा रहे थे। अँग्रेज़ी उनकी मादरी ज़बान न थी, बड़ी मुश्किल से अँग्रेज़ी लिखने का हुनर आया था। ऐक्सेंट तो अब भी अच्छा नहीं था, इसलिए अपने अँग्रेज़ीदाँ कलीग्स के बी

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

17 अगस्त 2024

जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं

कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य

बेला लेटेस्ट

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए