मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’
तापस 26 अक्तूबर 2024
ऋतिक रोशन ने जब मुझे अपनी ओर अट्रैक्ट किया, उसकी पहली वजह थी यह गाना और उस पर ऋतिक बेहतरीन डांस—“करना है क्या मुझको यह मैंने कब है जाना…”
प्रभुदेवा की कोरियोग्राफ़ी और फ़रहान अख़्तर का कैमरा। इस गाने की दीवानगी सर चढ़ कर बोलने लगी।
फ़िल्म (जिसमें एलियन ‘जादू’ ऋतिक के किरदार का दोस्त बन जाता है) ‘कोई… मिल गया’ में उनका डांस “Its Magic Its Magic I’ve Got The Vibe That You Need” याद करिए। कुछ-कुछ याद आया होगा—मुझे लगता था कि मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’। एक कमज़ोर और किसी भी कैटेगरी मैं न फ़िट होने वाला बच्चा।
बाद में पता चला कि सिने-संसार के लिए ऋतिक भी किसी करिश्में से कम नहीं। जब ‘कोई… मिल गया’ फ़िल्म का यह गाना—टीवी में, फ़िल्म में या किसी म्यूज़िक प्लेटफ़ॉर्म पर चलता सुनाई-दिखाई देता तो मैं पहले से ही साउंड बढ़ाकर, अपनी पैंट को बिल्कुल ऊपर चढ़ाकर रेडी हो जाता...
कच्चा नहीं कुछ भी,
पक्का नहीं कुछ भी,
होता है जो कुछ भी,
सब खेल है
मेरे मुंडन के दिन, शाम को हमारे घर की छत पर पार्टी रखी गई थी। उस दिन मैं इसी गाने पर बहुत नाचा था। मैं ख़ुद भी अचंभित था। बहुत ज़ोरदार नाचा, इतना ज़ोरदार कि रिश्तेदारी में लगने वाले भाई-बहनों की छुट्टी कर दी।
अब आ जाते हैं—“ओ...ए ई...आ...ए, ओ...ए ई...ओ” (फ़िल्म 'लक्ष्य' का गीत 'मैं ऐसा क्यों हूँ')
तो इस गाने में अगर मैं ख़ुद को तैयार कर खड़ा कर लूँ—क्योंकि मुझे अपनी बात पूरी करनी है—भरसक कोशिश के बाद भी मैं वैसा डांस नहीं कर पाऊँगा।
इसलिए हिंदी कविता में भी मैं रोहित की तरह ही आया और जादू की शक्तियों से लैस मेरा व्यक्तित्व बास्केटबॉल पर ऐसी लात मारता है कि बॉल ऊपर आसमान की ओर—टंगती ही जाती है-टंगती ही जाती है...
कविता लिखते हुए इस ख़याल पर बहुत विचार किया कि कविता में यह सब बातें मैं कैसे लिखूँ! और अब मैं यही सोचा करता हूँ कि मैं ऐसा क्यों हूँ!
ऋतिक रोशन ने मेरे बचपन को अपनी फ़िल्मों से, अपने किरदारों से बहुत प्रगाढ़ और मज़बूत बनाया है। मैं आज भी अपनी उलझनों को बचपन की तरह साथ लिए चलना चाहता हूँ। मेरा बचपन बहुत बड़ी किताब है, कुछ लोगों का बचपन छोटा हुआ करता है। वह बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं और अपना बचपन भूल जाते हैं।
मैं वैसा नहीं हूँ तो मैं ऐसा क्यों हूँ?
'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए
कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें
आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद
हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे
बेला पॉपुलर
सबसे ज़्यादा पढ़े और पसंद किए गए पोस्ट
06 अक्तूबर 2024
'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'
यह दो अक्टूबर की एक ठीक-ठाक गर्मी वाली दोपहर है। दफ़्तर का अवकाश है। नायकों का होना अभी इतना बचा हुआ है कि पूँजी के चंगुल में फँसा यह महादेश छुट्टी घोषित करता रहता है, इसलिए आज मेरी भी छुट्टी है। मेर
24 अक्तूबर 2024
एक स्त्री बनने और हर संकट से पार पाने के बारे में...
हान कांग (जन्म : 1970) दक्षिण कोरियाई लेखिका हैं। वर्ष 2024 में, वह साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली दक्षिण कोरियाई लेखक और पहली एशियाई लेखिका बनीं। नोबेल से पूर्व उन्हें उनके उपन
21 अक्तूबर 2024
आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ : हमरेउ करम क कबहूँ कौनौ हिसाब होई
आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ अवधी में बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ की नई लीक पर चलने वाले कवि हैं। वह वंशीधर शुक्ल, रमई काका, मृगेश, लक्ष्मण प्रसाद ‘मित्र’, माता प्रसाद ‘मितई’, विकल गोंडवी, बेकल उत्साही, ज
02 जुलाई 2024
काम को खेल में बदलने का रहस्य
...मैं इससे सहमत नहीं। यह संभव है कि काम का ख़ात्मा किया जा सकता है। काम की जगह ढेर सारी नई तरह की गतिविधियाँ ले सकती हैं, अगर वे उपयोगी हों तो। काम के ख़ात्मे के लिए हमें दो तरफ़ से क़दम बढ़ाने
13 अक्तूबर 2024
‘कई चाँद थे सरे-आसमाँ’ को फिर से पढ़ते हुए
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के उपन्यास 'कई चाँद थे सरे-आसमाँ' को पहली बार 2019 में पढ़ा। इसके हिंदी तथा अँग्रेज़ी, क्रमशः रूपांतरित तथा अनूदित संस्करणों के पाठ 2024 की तीसरी तिमाही में समाप्त किए। तब से अब