Font by Mehr Nastaliq Web

मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’

ऋतिक रोशन ने जब मुझे अपनी ओर अट्रैक्ट किया, उसकी पहली वजह थी यह गाना और उस पर ऋतिक बेहतरीन डांस—“करना है क्या मुझको यह मैंने कब है जाना…”

प्रभुदेवा की कोरियोग्राफ़ी और फ़रहान अख़्तर का कैमरा। इस गाने की दीवानगी सर चढ़ कर बोलने लगी।

फ़िल्म (जिसमें एलियन ‘जादू’ ऋतिक के किरदार का दोस्त बन जाता है) ‘कोई… मिल गया’ में उनका डांस “Its Magic Its Magic I’ve Got The Vibe That You Need” याद करिए। कुछ-कुछ याद आया होगा—मुझे लगता था कि मैं वही हूँ—‘कोई… मिल गया’ का ‘रोहित’। एक कमज़ोर और किसी भी कैटेगरी मैं न फ़िट होने वाला बच्चा। 

बाद में पता चला कि सिने-संसार के लिए ऋतिक भी किसी करिश्में से कम नहीं। जब ‘कोई… मिल गया’ फ़िल्म का यह गाना—टीवी में, फ़िल्म में या किसी म्यूज़िक प्लेटफ़ॉर्म पर चलता सुनाई-दिखाई देता तो मैं पहले से ही साउंड बढ़ाकर, अपनी पैंट को बिल्कुल ऊपर चढ़ाकर रेडी हो जाता...

कच्चा नहीं कुछ भी, 
पक्का नहीं कुछ भी, 
होता है जो कुछ भी, 
सब खेल है 

मेरे मुंडन के दिन, शाम को हमारे घर की छत पर पार्टी रखी गई थी। उस दिन मैं इसी गाने पर बहुत नाचा था। मैं ख़ुद भी अचंभित था। बहुत ज़ोरदार नाचा, इतना ज़ोरदार कि रिश्तेदारी में लगने वाले भाई-बहनों की छुट्टी कर दी। 

अब आ जाते हैं—“ओ...ए ई...आ...ए, ओ...ए ई...ओ” (फ़िल्म 'लक्ष्य' का गीत 'मैं ऐसा क्यों हूँ')

तो इस गाने में अगर मैं ख़ुद को तैयार कर खड़ा कर लूँ—क्योंकि मुझे अपनी बात पूरी करनी है—भरसक कोशिश के बाद भी मैं वैसा डांस नहीं कर पाऊँगा।

इसलिए हिंदी कविता में भी मैं रोहित की तरह ही आया और जादू की शक्तियों से लैस मेरा व्यक्तित्व बास्केटबॉल पर ऐसी लात मारता है कि बॉल ऊपर आसमान की ओर—टंगती ही जाती है-टंगती ही जाती है...

कविता लिखते हुए इस ख़याल पर बहुत विचार किया कि कविता में यह सब बातें मैं कैसे लिखूँ! और अब मैं यही सोचा करता हूँ कि मैं ऐसा क्यों हूँ!

ऋतिक रोशन ने मेरे बचपन को अपनी फ़िल्मों से, अपने किरदारों से बहुत प्रगाढ़ और मज़बूत बनाया है। मैं आज भी अपनी उलझनों को बचपन की तरह साथ लिए चलना चाहता हूँ। मेरा बचपन बहुत बड़ी किताब है, कुछ लोगों का बचपन छोटा हुआ करता है। वह बहुत जल्दी बड़े हो जाते हैं और अपना बचपन भूल जाते हैं।

मैं वैसा नहीं हूँ तो मैं ऐसा क्यों हूँ?

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

24 मार्च 2025

“असली पुरस्कार तो आप लोग हैं”

24 मार्च 2025

“असली पुरस्कार तो आप लोग हैं”

समादृत कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। वर्ष 1961 में इस पुरस्कार की स्थापना ह

09 मार्च 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘चारों ओर अब फूल ही फूल हैं, क्या गिनते हो दाग़ों को...’

09 मार्च 2025

रविवासरीय : 3.0 : ‘चारों ओर अब फूल ही फूल हैं, क्या गिनते हो दाग़ों को...’

• इधर एक वक़्त बाद विनोद कुमार शुक्ल [विकुशु] की तरफ़ लौटना हुआ। उनकी कविताओं के नवीनतम संग्रह ‘केवल जड़ें हैं’ और उन पर एकाग्र वृत्तचित्र ‘चार फूल हैं और दुनिया है’ से गुज़रना हुआ। गुज़रकर फिर लौटना हुआ।

26 मार्च 2025

प्रेम, लेखन, परिवार, मोह की 'एक कहानी यह भी'

26 मार्च 2025

प्रेम, लेखन, परिवार, मोह की 'एक कहानी यह भी'

साल 2006 में प्रकाशित ‘एक कहानी यह भी’ मन्नू भंडारी की प्रसिद्ध आत्मकथा है, लेकिन मन्नू भंडारी इसे आत्मकथा नहीं मानती थीं। वह अपनी आत्मकथा के स्पष्टीकरण में स्पष्ट तौर पर लिखती हैं—‘‘यह मेरी आत्मकथा

19 मार्च 2025

व्यंग्य : अश्लील है समय! समय है अश्लील!

19 मार्च 2025

व्यंग्य : अश्लील है समय! समय है अश्लील!

कुछ रोज़ पूर्व एक सज्जन व्यक्ति को मैंने कहते सुना, “रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना अश्लील हैं, क्योंकि वे दोनों अगम्यगमन (इन्सेस्ट) अथवा कौटुंबिक व्यभिचार पर मज़ाक़ करते हैं।” यह कहने वाले व्यक्ति का

10 मार्च 2025

‘गुनाहों का देवता’ से ‘रेत की मछली’ तक

10 मार्च 2025

‘गुनाहों का देवता’ से ‘रेत की मछली’ तक

हुए कुछ रोज़ किसी मित्र ने एक फ़ेसबुक लिंक भेजा। किसने भेजा यह तक याद नहीं। लिंक खोलने पर एक लंबा आलेख था—‘गुनाहों का देवता’, धर्मवीर भारती के कालजयी उपन्यास की धज्जियाँ उड़ाता हुआ, चन्दर और उसके चरित

बेला लेटेस्ट