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‘जश्न-ए-फ़रीद काज़मी’ में खेला गया ‘मगध’

गत दिनांक 16 सितंबर 2024 को ‘जश्न-ए-फ़रीद काज़मी’ का आयोजन किया गया। प्रयागराज स्थित स्वराज विद्यापीठ में यह कार्यक्रम शाम 5 बजे शुरू हुआ। यह तीन हिस्सों में संपन्न हुआ :

• हमारी यादों में फ़रीद काज़मी (संस्मरण) 
• सिनेमा में स्वराज की अवधारणा  
• श्रीकांत वर्मा की कविताओं पर आधारित नाटक ‘मगध’ की प्रस्तुति

फ़रीद काज़मी के छात्रों हिमांशु और देवेश द्वारा जनगीत की प्रस्तुति से कार्यक्रम का आग़ाज़ हुआ। इसके बाद उनकी एक छात्रा सौम्या यादव ने उनकी याद में एक कविता सुनाई। संस्मरणों की शुरुआत वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष मोहम्मद शाहिद ने की जिन्होंने काज़मी जी से अपने रिश्ते को याद करते हुए उनसे मिले समर्थन का भी ज़िक्र किया। इतिहास विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर हेरम्ब चतुर्वेदी एवं राजनीति विज्ञान विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अनुराधा कुमार ने भी अपनी यादों में सँजोए क़िस्सों के माध्यम से प्रो. काज़मी के अध्यापकीय,  विशेषतः इलाहाबादी अंदाज़ को अत्यंत सहज-सरल शब्दों में बयान किया।

कार्यक्रम की दूसरी कड़ी में स्वराज फ़िल्म आर्काइव के संयोजक-शिक्षाविद स्वप्निल श्रीवास्तव ने ‘सिनेमा में स्वराज की अवधारणा’ विषय पर व्याख्यान दिया। इस क्रम में उन्होंने विभिन्न फ़िल्मों जैसे : ‘नीरोज गेस्ट’, ‘धर्म’, ‘गांधी’, ‘चिकेन रन’, ‘द मॉडर्न टाइम’, ‘द रिवॉल्यूशन विल नॉट बे टेलिवाइज’ और ‘ए फ़ोर्स मोर पॉवरफ़ुल’ फ़िल्मों का हवाला देते हुए इन बातों की ओर ध्यान आकृष्ट किया कि सन् 2007 के पहले फ़िल्में अपनी कथावस्तु में किस प्रकार स्वराज की अवधारणा और उसके महत्व को समेटे हुए हैं।

कार्यक्रम का अगला पड़ाव यूनिवर्सिटी थिएटर द्वारा श्रीकांत वर्मा की कविताओं पर आधारित नाटक ‘मगध’ की प्रस्तुति' था। प्रस्तुति का आरंभ एक कोरस गान और शंखनाद से होता है। व्यक्ति, समाज और राजनीति का त्रिकोण प्रस्तुत करता हुआ यह ऐतिहासिक नाटक, वर्तमान की राजनीतिक विसंगतियों को भी बख़ूबबी व्यक्त करता है। इस नाटक में दिखाया गया है कि अव्यवस्थित रूप से चलने वाला शासन आम जनता को कभी संतुष्ट नहीं कर सकता।

मगध के लोग
मृतकों की हड्डियाँ चुन रहे हैं

कौन-सी अशोक की हैं?
और चंद्रगुप्त की?
नहीं, नहीं
ये बिम्बिसार की नहीं हो सकतीं
अजातशत्रु की हैं...

ये पंक्तियाँ बताती हैं कि राज्य पर एकाधिकार स्थापित करने हेतु दो शासकों का परस्पर युद्ध आम बात है। यह नाटक न्याय-प्रणाली, राजनीतिक सभाओं आदि पर भी ज़ोरदार व्यंग्य करता है, साथ ही वर्तमान सत्ता की पदलोलुपता और हिंसात्मक प्रवृत्ति को भी दर्शाता है।

इस नाट्य प्रस्तुति की सफलता इस बिंदु में और भी महत्त्वपूर्ण है कि अभिनेताओं ने अत्यंत सीमित साधनों में तथा सीमित समय में अपने स्पष्ट, चुस्त और सटीक संवादों के माध्यम से नाटक को दर्शकों तक सफलतापूर्वक संप्रेषित किया। अभिनेता के रूप में दुर्गेश, कुमार अभिनव, दीपशिखा, कीर्ति, माधवी, सृष्टि, अर्पिता, ख़ुशी, अंजली, शिवम, आशीष, श्रेया, सैफ़ आदि ने अत्यंत जीवंत प्रस्तुति दी। अभिनय का सबसे प्रभावशाली हिस्सा वह रहा; जब चार पात्रों ने संकेतों के माध्यम से समाज के कृषक, कवि, कुम्हार और शिल्पकार वर्ग के कार्यों को प्रस्तुत किया। स्वराज विद्यापीठ के परिसर में अंगना रंगमंच का निर्माण करते हुए चारों तरफ़ बैठे दर्शकों के मध्य अभिनेता ने मनोशारीरिक रंग-भाषा में नाटक की प्रस्तुति की जिसमें कविता के बिंबों को अपनी देहगतियों से साकार किया... इसमें उनका साथ कोरस और संगीत की मंडली ने दिया जिसमें हर्ष, अजीत, विप्लव, प्राची, श्रीह आदि थे। ‘मगध है तो शांति है...’ को उतार-चढ़ाव और अलग-अलग भंगिमाओं में दो अभिनेताओं के वाचन ने बहुत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया।

यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि संपूर्ण नाट्य प्रस्तुति की सफलता इस तथ्य पर है कि नाटक की मूल संवेदना दर्शकों-प्रेक्षकों के समक्ष सहजता और सरलता से स्पष्ट हुई।

श्रीकांत वर्मा की कविताओं पर आधारित ‘मगध’ का नाट्य-आलेख सुपरिचित रंगकर्मी दिलीप गुप्ता और सुपरिचित रंग-आलोचक अमितेश कुमार ने तैयार किया है। इस नाटक का निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) से प्रशिक्षित सिद्धार्थ पाल ने किया।

इस संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन अंकित पाठक ने किया।

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यह रपट अवंतिका केसरवानी ने लिखी है। वह हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोधरत हैं।

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