
दर्द को बरक़रार नहीं रखा जा सकता है, इसे ‘विकसित करके’ हास्य में परिवर्तित करने की ज़रूरत है।

हँसना गहराई से जीना है।

हास्य मानव जाति का सबसे बड़ा वरदान है।

संसार में इससे बढ़कर हँसी की दूसरी बात नहीं हो सकती कि जो दुर्जन हैं, वे स्वयं ही सज्जन पुरुषों को 'दुर्जन' कहते हैं।



हँसी एक बचाव है।

लोक की हँसी सहने वाले ही लोक का निर्माण करते हैं।

सब वर्गों की हँसी और ठहाके अलग-अलग होते हैं।

जो परिहास का उत्तर नहीं दे सकता, वह हँसता हुआ कम से कम रस तो ले सकता है।

तुम किस पर हँस रहे हो? तुम ख़ुद पर हँस रहे हो।