
दुनिया में दु:ख तो बहुत हैं, परंतु अगम-अगाध गंभीर दु:ख बहुत ही कम! ठीक वैसे ही जैसे कामबोध की खुजलाहट तो सबके पास है, परंतु निर्मल उदात्त प्रेम की क्षमता बिरले के ही पास होती है।

आँखें एक जैसी होने पर भी देखने-देखने में फ़र्क़ होता है।

शरीर अंततः अवास्तविक है।
