
दुनिया में दु:ख तो बहुत हैं, परंतु अगम-अगाध गंभीर दु:ख बहुत ही कम! ठीक वैसे ही जैसे कामबोध की खुजलाहट तो सबके पास है, परंतु निर्मल उदात्त प्रेम की क्षमता बिरले के ही पास होती है।

आँखें एक जैसी होने पर भी देखने-देखने में फ़र्क़ होता है।

शरीर अंततः अवास्तविक है।

प्राण-संशय होने पर प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता है।

आधुनिकता का प्रभाव बीमारी के रूप में लोगों के मन में घुस गया है। इस बीमारी का पहला दुष्परिणाम यह है कि आदमी जो जीता है, उससे भिन्न रूप दिखाता है।

नाटक में सत्य एक शाश्वत मरीचिका है।

यथार्थ क्या है और अयथार्थ क्या है–इसका कोई स्पष्ट भेद नहीं रहा है और न ही सच्च व झूठ में कोई अंतर रहा है।

वृहत्तर अर्थों में प्रसन्नता कोई ऐसी यथार्थवादी खोज नहीं है। प्रसन्नता एक क्षण है। प्रसन्नता एक तितली है। मैं जब कोई रचना पूरी कर लेता हूँ तो मुझे प्रसन्नता महसूस होती है।