Font by Mehr Nastaliq Web

ईश्वर पर सबद

ईश्वर मानवीय कल्पना

या स्मृति का अद्वितीय प्रतिबिंबन है। वह मानव के सुख-दुःख की कथाओं का नायक भी रहा है और अवलंब भी। संकल्पनाओं के लोकतंत्रीकरण के साथ मानव और ईश्वर के संबंध बदले हैं तो ईश्वर से मानव के संबंध और संवाद में भी अंतर आया है। आदिम प्रार्थनाओं से समकालीन कविताओं तक ईश्वर और मानव की इस सहयात्रा की प्रगति को देखा जा सकता है।

हम घरि साजन आए

गुरु नानक

काहे रे, बन खोजन जाई

गुरु तेगबहादुर

जब कबहूँ मन हरि भजै

संत परशुरामदेव

जो सुमिरूँ तो पूरन राम

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

रमईया तुम बिन रह्यो न जाइ

तुरसीदास निरंजनी

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए