
यह एकदम स्पष्ट है कि हम तथ्यों से नहीं, बल्कि तथ्यों की हमारी व्याख्या से प्रभावित होते हैं।

श्रीमानों के शुभागमन पर पद्य बनाना, बात-बात में उनको बधाई देना, कवि का काम नहीं। जिनके रूप या कर्म-कलाप जगत और जीवन के बीच में उसे सुंदर लगते हैं, उन्हीं के वर्णन में वह स्वांतः सुखाय प्रवृत्त होता है।

अव्यक्त निर्गुण, निर्विशेष ब्रह्म उपासना के व्यवहार में सगुण ईश्वर हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि उपासना जब होगी, तब व्यक्त और सगुण की ही होगी, अव्यक्त और निर्गुण की नहीं।

जिसका किसी भी तरह वर्णन किया जाना संभव नहीं है, जो कैसा है, यह जाना नहीं जा सकता, जिसका अस्तित्व नित्य ही रहता है, ऐसे उस परमात्मा को देखो।

ईश्वर की असंख्य व्याख्याएँ हैं, क्योंकि उसकी विभूतियाँ भी अगणित हैं।