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वल्लथोल नारायण मेनन

1878 - 1958

वल्लथोल नारायण मेनन की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 5

अद्वैत सिद्धांत ही हमारे लिए माँ का दूध है। जन्म से ही हम द्वेष, भेदबुद्धि और अहं से रहित हैं।

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भास, कालिदास आदि के पालन करने वाले भास्कर कोश-गृहों को समझने में कठिन वेद रूपी पर्वत से निकलकर बहनेवाली निर्मल नदियों, उन्नत उपनिषद देवताओं के मंदिरों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष वाले पौधों के खेतों, यशस्वी आर्यों के जयस्तम्भ श्रेष्ठ पुराणो! तुम्हें मेरा प्रणाम!

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यदि आप मातृभाषा की सेवा नहीं करते तो स्वतंत्रता के लिए अयोग्य ही हैं। आपका मस्तक यदि अपनी भाषा के सामने भक्ति से झुक जाए, तो फिर वह कैसे उठ सकता है?

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कोई भी वेद, शास्त्र और काव्य हृदयंगम हो जाए, इसके लिए आवश्यक है कि उसे अपनी ही भाषा के मुँह से सुनें। अपनी भाषा की प्रत्येक हद्य बूँद मन-सुमन में मधु होकर मिल जाती है। दूसरी बूँदें उसके बाह्य भागों को मात्र चमका देने वाले मोती हैं।

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निकटवर्ती समुद्र की गंभीरता, सह्य गिरि की आधार-दृढ़ता, गोकर्ण मंदिर की प्रफुल्लता, कन्याकुमारी की प्रसन्नता, गंगोपम, 'पेरार' (नदी) की विशुद्धि, कच्चे नारियल जल का माधुर्य, चंदन, एला, लवंग आदि वस्तुओं की आनंदप्रद सुगंध, संस्कृत भाषा का ओज, और ठेठ द्रविड़ का सौंदर्य ये सब मेरी भाषा में मिले हुए हैं।

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