गजानन माधव मुक्तिबोध के उद्धरण
हमारे आलस्य में भी एक छिपी हुई, जानी-पहचानी योजना रहती है।
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अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब।
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सच्चा लेखक जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने सिर पर ले लेता है, स्वयं को उतना अधिक तुच्छ अनुभव करता है।
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मुक्ति अकेले में अकेले की नहीं हो सकती। मुक्ति अकेले में अकेले को नहीं मिलती।
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अच्छाई का पेड़ छाया प्रदान नहीं कर सकता, आश्रय प्रदान नहीं कर सकता।
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जब तक मेरा दिया तुम किसी और को न दोगे, तब तक तुम्हारी मुक्ति नहीं।
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झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है—अधिक महत्त्वपूर्ण और प्राणवान।
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वेदना बुरी होती है। वह व्यक्ति को व्यक्ति-बद्ध कर देती है।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere