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शृंगार पर उद्धरण

सामान्यतः वस्त्राभूषण

आदि से रूप को सुशोभित करने की क्रिया या भाव को शृंगार कहा जाता है। शृंगार एक प्रधान रस भी है जिसकी गणना साहित्य के नौ रसों में से एक के रूप में की जाती है। शृंगार भक्ति का एक भाव भी है, जहाँ भक्त स्वयं को पत्नी और इष्टदेव को पति के रूप में देखता है। इस चयन में शृंगार विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

नदी निषादों की है, नाग किरात-प्रतीक हैं और सोम है, आर्यों का श्रेष्ठतम देवता—आर्य वांग्मय और उपासना का चरम प्रतीक। अद्भुत एवं सार्थक हैं, देवाधिदेव के ये तीनों शीश-शृंगार!

कुबेरनाथ राय
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वास्तव में शृंगार का संतुलन तथा उन्नयन ही अध्यात्म है।

सुमित्रानंदन पंत

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