जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।
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असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।
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प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है। प्रेम का मुख्य अर्थ है—‘आत्मत्याग’।
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जीवन विश्व की संपत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से, या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना ठीक तो नहीं।
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परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शांति मरण है।
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ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात-दिन लड़ना पड़े!
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प्रत्येक जाति में मनुष्य को बाल्यकाल ही में एक धर्म-संघ का सदस्य बना देने की मूर्खतापूर्ण प्रथा चली आ रही है। जब उसमें जिज्ञासा नहीं, प्रेरणा नहीं, तब उसके धर्मग्रहण करने का क्या तात्पर्य हो सकता है?

देशभक्त, जननी का सच्चा पुत्र है।

वही शरीर है, वही रूप है, वही हृदय है; पर छिन गया अधिकार और मनुष्य का मान-दंड ऐश्वर्य। अब तुलना में सबसे छोटी हूँ। जीवन लज्जा की रंगभूमि बन रहा है।

इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।
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क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।
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सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।
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दूसरे की दया सब लोग खोजते हैं और स्वयं करनी पड़े कान पर हाथ रख लेते हैं।
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दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।
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धर्म जब व्यापार हो गया और उसका कारबार चलने लगा, फिर तो उसमें हानि और लाभ दोनों होगा।
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अधिक हर्ष और उन्नति के बाद ही अधिक दुःख और पतन की बारी आती है।
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जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।
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निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।
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दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।
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जिसकी भुजाओं में दम न हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।
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स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।
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मनुष्य दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बंद कर देता है।
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संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत ही नरक है।
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संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?
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हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।
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जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।
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जीवन लालसाओं से बना हुआ सुंदर चित्र है। उसका रंग छीनकर उसे रेखा-चित्र बना देने से मुझे संतोष नहीं होगा।
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संसार भी बड़ा प्रपंचमय यंत्र है। वह अपनी मनोहरता पर आप ही मुग्ध रहता है।
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संसार में बहुत-सी बातें बिना अच्छी हुए भी अच्छी लगती हैं और बहुत-सी अच्छी बातें बुरी मालूम पड़ती हैं।
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सत्य इतना विराट है कि हम क्षुद्र जीव व्यवहारिक रूप से उसे संपूर्ण ग्रहण करने में प्रायः असमर्थ प्रमाणित होते हैं।
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जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।
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संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है, उतनी कटार नहीं।
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जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।
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सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने हृदय में डुबा नहीं सकता।
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अच्छा क्या है और बुरा क्या है? इसका निर्णय एकांगी दृष्टि से नहीं किया जा सकता। विष, चिकित्सक द्वारा अमृतकल्प हो जाता है।
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