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जयशंकर प्रसाद

1889 - 1937 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

जयशंकर प्रसाद के उद्धरण

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अन्य देश मनुष्यों की जन्मभूमि है, लेकिन भारत मानवता की जन्मभूमि है।

  • संबंधित विषय : देश

असंभव कहकर किसी काम को करने से पहले, कर्मक्षेत्र में काँपकर लड़खड़ाओ मत।

प्रेम महान है, प्रेम उदार है। प्रेमियों को भी वह उदार और महान बनाता है। प्रेम का मुख्य अर्थ है—‘आत्मत्याग’।

परिवर्तन ही सृष्टि है, जीवन है। स्थिर होना मृत्यु है, निश्चेष्ट शांति मरण है।

जीवन विश्व की संपत्ति है। प्रमाद से, क्षणिक आवेश से, या दुःख की कठिनाइयों से उसे नष्ट करना ठीक तो नहीं।

ऐसा जीवन तो विडंबना है, जिसके लिए रात-दिन लड़ना पड़े!

क्षमा पर केवल मनुष्य का अधिकार है, वह हमें पशु के पास नहीं मिलती।

इस भीषण संसार में एक प्रेम करने वाले हृदय को दबा देना सबसे बड़ी हानि है।

सहनशील होना अच्छी बात है, पर अन्याय का विरोध करना उससे भी उत्तम है।

दो प्यार करने वाले हृदयों के बीच में स्वर्गीय ज्योति का निवास होता है।

प्रत्येक स्थान और समय बोलने योग्य नहीं रहते।

जो अपने कर्मों को ईश्वर का कर्म समझकर करता है, वही ईश्वर का अवतार है।

जीवन का सत्य है—प्रसन्नता।

  • संबंधित विषय : सुख

अधिक हर्ष और उन्नति के बाद ही अधिक दुःख और पतन की बारी आती है।

निद्रा भी कैसी प्यारी वस्तु है। घोर दु:ख के समय भी मनुष्य को यही सुख देती है।

पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।

समय बदलने पर लोगों की आँखें भी बदल जाती हैं।

  • संबंधित विषय : समय

जिसकी भुजाओं में दम हो, उसके मस्तिष्क में तो कुछ होना ही चाहिए।

ऐश्वर्य का मदिरा-विलास किसे स्थिर रहने देता है!

दरिद्रता सब पापों की जननी है तथा लोभ उसकी सबसे बड़ी संतान है।

हृदय का सम्मिलन ही तो ब्याह है।

मनुष्य दूसरों को अपने मार्ग पर चलाने के लिए रुक जाता है, और अपना चलना बंद कर देता है।

संसार में छल, प्रवंचना और हत्याओं को देखकर कभी-कभी मान ही लेना पड़ता है कि यह जगत ही नरक है।

प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।

जीवन लालसाओं से बना हुआ सुंदर चित्र है। उसका रंग छीनकर उसे रेखा-चित्र बना देने से मुझे संतोष नहीं होगा।

स्त्री जिससे प्रेम करती है, उसी पर सर्वस्व वार देने को प्रस्तुत हो जाती है।

सेवा सबसे कठिन व्रत है।

संसार ही युद्ध क्षेत्र है, इसमें पराजित होकर शस्त्र अर्पण करके जीने से क्या लाभ?

पुरुष क्रूरता है तो स्त्री करुणा है।

संसार भी बड़ा प्रपंचमय यंत्र है। वह अपनी मनोहरता पर आप ही मुग्ध रहता है।

हम जितनी कठिनता से दूसरों को दबाए रखेंगे, उतनी ही हमारी कठिनता बढ़ती जाएगी।

आत्म-सम्मान के लिए मर मिटना ही दिव्य-जीवन है।

जागृत राष्ट्र में ही विलास और कलाओं का आदर होता है।

  • संबंधित विषय : कला

सत्य इतना विराट है कि हम क्षुद्र जीव व्यवहारिक रूप से उसे संपूर्ण ग्रहण करने में प्रायः असमर्थ प्रमाणित होते हैं।

  • संबंधित विषय : सच

संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है, उतनी कटार नहीं।

कभी-कभी मौन रह जाना बुरी बात नहीं है।

जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता, उसे ले लेने की स्पर्द्धा से बढ़कर दूसरा दंभ नहीं।

वीरता जब भागती है, तब उसके पैरों से राजनीतिक छल-छद्म की धूल उड़ती है।

सोने की कटार पर मुग्ध होकर उसे कोई अपने हृदय में डुबा नहीं सकता।

  • संबंधित विषय : दिल

मूर्खता सरलता का सत्यरूप है।

  • संबंधित विषय : सच

मानव स्वभाव दुर्बलताओं का संकलन है।

स्त्री का हृदय प्रेम का रंगमंच है।

निष्फल क्रोध का परिणाम होता है, रो देना।

जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है प्रसन्नता। यह जिसने हासिल कर ली, उसका जीवन सार्थक हो गया।

  • संबंधित विषय : सुख

सुख तो धर्माचरण से मिलता है, अन्यथा संसार तो दुःखमय है ही! संसार के कर्मों को धार्मिकता के साथ करने में सुख की ही संभावना है।

  • संबंधित विषय : सुख

मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।

नारी की करुणा अंतर्जगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं।

पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है।

राजा अपने राज्य की रक्षा करने में असमर्थ है, तब भी उस राज्य की रक्षा होनी ही चाहिए।

केवल महत्ता का प्रदर्शन, मन पर अनुचित प्रभाव का बोझ है।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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