
मंगल पांडे ने सत्तावन के इस क्रांतियुद्ध के लिए अपना उष्ण रक्त प्रदान किया था। किंतु इसके साथ ही साथ उसने अपना नाम भी अमिट रहने वाले अक्षरों में कर दिया। स्वधर्म और स्वराज्य हेतु लड़े गए 1857 के स्वातंत्र्य-समर में भाग लेने वाले सभी क्रांतिकारियों को भी इस क्रांति के शत्रुओं ने 'पांडे' नाम से संबोधित किया। प्रत्येक माता का यह पावन दायित्व है कि अपने बालक को इस पवित्र नाम का स्वाभिमान सहित उच्चारण करना सिखला दे।

क्रांतिकारी को गृहस्थी में पड़ कर अपनी शक्ति कम नहीं कर लेनी चाहिए अपितु सदैव अपनी शक्ति बढ़ाते रहने का प्रयत्न करना चाहिए, दिन पर दिन अपनी शक्ति को गहरा और विशाल बनाने का प्रयत्न करते रहना चहिए। इस काम के लिए पूरा समय चाहिए। क्रांतिकारियों को सदा दूसरों से आगे रहना चाहिए।

कोई क्रांतिकारी किसी व्यक्ति-विशेष से चिपटकर नहीं रह सकता, किसी के साथ लगातार हाथ मिलाए हुए जीवन में नहीं चल सकता। ऐसा करे तो उसे अपने क्रांतिकारी विश्वास को कम और ढीला करना होगा।