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सामंतवाद पर उद्धरण

सूरदास के काव्य में कृष्ण से राधा और दूसरी गोपियों का प्रेम, सामंती नैतिकता के बंधनों से मुक्त प्रेम है।

मैनेजर पांडेय

सूरदास जिस सामंती समाज में रचना कर रहे थे, उसमें मनुष्य से अधिक व्यवस्था के बंधनों का महत्त्व था। उनकी रचना में सामंती व्यवस्था के बंधनों से मुक्ति के लिए बेचैन मनुष्य का चरित्र उभरता है।

मैनेजर पांडेय

लोक की रूढ़ियाँ, शास्त्र की रूढ़ियों से कम दमनकारी नहीं होतीं।

मैनेजर पांडेय

सामंतवाद के विघटन और जनसंस्कृति के उत्थान की प्रक्रिया से उपजे भक्तिकाव्य में सामंतवाद विरोधी स्वर का मुखर होना स्वाभाविक है।

मैनेजर पांडेय

आचार्य शुक्ल जिसे मर्यादा कहते हैं, वह वास्तव में रूढ़ि है।

मैनेजर पांडेय

हिंदी क्षेत्र में अभी सामंती मूल्यों और रूढ़ियों का जितना अधिक प्रभाव है, उतना देश के किसी अन्य भाग में शायद ही कहीं हो। इसलिए यहाँ स्त्रियों का जैसा शोषण, दमन और उत्पीड़न है—वैसा अन्यत्र कहीं नहीं।

मैनेजर पांडेय

रूढ़ियाँ केवल शास्त्र की ही नहीं होतीं, लोक की भी होती हैं।

मैनेजर पांडेय