Font by Mehr Nastaliq Web

सिस्टम पर कविताएँ

'सिस्टम ही ख़राब है'

के आशय और अभिव्यक्ति में शासन-व्यवस्था या विधि-व्यवस्था पर आम-अवाम का असंतोष और आक्रोश दैनिक अनुभवों में प्रकट होता रहता है। कई बार यह कटाक्ष या व्यंग्यात्मक लहज़े में भी प्रकट होता है। ऐसे 'सिस्टम' पर टिप्पणी में कविता की भी मुखर भूमिका रही है।

कविता और टैक्स-इंसपेक्टर

व्लादिमीर मायाकोव्स्की

उनकी सनातन करुणा

नामदेव ढसाल

कील

वास्को पोपा

दोनातेलो और डेविड

कोलिन फ़ाल्क

अभी तक सायरन

डेनिस ब्रूटस

बेवक़ूफ़

सुभाष मुखोपाध्याय

नरक के बारे में सोचते हुए

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

यही तो सवाल है

नाज़िम हिकमत

अस्पताल में

बोरीस पस्तेरनाक

उन्होंने छीन लिया

मारीना त्स्वेतायेवा

कर्मचारियों का युग

वोत्येज्स्लव नेज्वल

अस्पताल में

ह्यूगो विलियम्स

विलोम

महमूद दरवेश

कर दिया गया बाहर मैदान से

इबॉर्तो पॅदिल्ल्या

क्रैक-डाउन

ग़ुलाम मुहम्मद शाद

सालों पहले जब मैं

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

हल

सितांशु यशश्चंद्र

मैं कौन हूँ?

युमनाम मंगीचंद्र

एक सजेशन

सितांशु यशश्चंद्र

जो आदमी मुझे अपने घर ले गया

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

मिट्टी का दर्शन

वसंत आबाजी डहाके

चोरी

अय्यप्प पणिक्कर

आंतरिक शासन

सनख्या इबोतोम्बी

शिकायत

सितांशु यशश्चंद्र

सावधान

नारायण सुर्वे

लेकिन गोदाम में नौकरी?

सितांशु यशश्चंद्र

मिट्टी के बावे

जसवंत ज़फ़र

बेकारी

बी. गोपाल रेड्डी

गोदाम में एक नज़र

सितांशु यशश्चंद्र

साहब की दी सुख-शांति

सितांशु यशश्चंद्र

ये कैसे हो सकता है, सरकार!

सितांशु यशश्चंद्र

मुलाक़ात

सितांशु यशश्चंद्र

पानी

नामदेव ढसाल

जंगलों का गीत

मान्युएल बान्दैरा

कुछ करना था

सी. पी. कवाफ़ी

मरीचिका

अग्निपुष्प

अनमना

अमरनाथ झा ‘अमर’

सेवा की लगन

दलजीत सिंह

पशु

रामस्वरूप किसान

संबंधित विषय