मरीचिका

marichika

अग्निपुष्प

अग्निपुष्प

मरीचिका

अग्निपुष्प

और अधिकअग्निपुष्प

    मेरे देश का संविधान

    कुछ लोगों की सुविधा के लिए बनाया गया है

    और जनतंत्र कभी संसद में

    और कभी सड़क पर

    ख़ाली कनस्तर-सा लुढ़क रहा है।

    तीस वर्षों के बाद संसद में दूसरी स्वतंत्रता

    घोषित की गई है

    फिर लाशों की एक ढेर पर

    तबक चिपका दिया गया है।

    तस्वीर बदलने के साथ, फ्रेम नहीं बदल जाता

    मुखिया के बदल जाने से

    गाँव नहीं बदल जाता

    सरकार के बदल जाने से

    व्यवस्था नहीं बदल जाती।

    संविधान को तुम कब तक संजोगे रहोगे

    जनतंत्र का जाल कब तक बुनते रहोगे

    संसद के अंदर आने-जाने के बहाने

    कब तक बनाते रहोगे

    गाँव की हवा बदल गई है

    इस पतझड़ के बाद

    अमलतास के पत्ते भी बदल गए हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिली कविताएँ (पृष्ठ 44)
    • संपादक : ज्ञानरंजन, कमलाप्रसाद
    • रचनाकार : अग्निपुष्प
    • प्रकाशन : पहल प्रकाशन

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए