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दरवाज़ा पर कविताएँ

आवाजाही के लिए दीवार

में खुले हुए स्थान के रूप में दरवाज़ा या द्वार घर का एक महत्त्वपूर्ण अंग होता है। इसे घर का मुख भी कहते हैं। आवाजाही की इस उपयोगिता के साथ दरवाजा दुनिया की और कल्पना की तमाम आवाजाहियों का एक रूपक बन जाता है। प्रस्तुत है स्मृति-विस्मृति, ठौर-बेठौर आदि तमाम जीवन दृश्यों को रचते दरवाज़ों पर एक ख़ास चयन।

दरवाज़ा

तादेऊष रूज़ेविच

थपकी

यानिस रित्सोस

धरती सारी

अदिति शर्मा

टूटा हुआ दरवाज़ा

यानिस रित्सोस

बंद हैं दरवाज़े

येहूदा आमिखाई

चरचराता दरवाज़ा

येहूदा आमिखाई

बिना कमरे का घर

जी. रंजीत शर्मा

मेरे दरवाज़े सुबह

पंकज चतुर्वेदी

चौखट

शिवम चौबे

अनगिन

अंकिता शाम्भवी

घरों के दरवाज़े

विजया सिंह

कभी तो खुलें कपाट

दिनेश कुमार शुक्ल

किवाड़

कुमार अम्बुज

त्रिशंकु

समृद्धि मनचंदा

दरवाज़े

इब्बार रब्बी

संकट द्वार

देवी प्रसाद मिश्र

लगता है कि जैसे

पंकज चतुर्वेदी

दरवाज़ा

प्रयाग शुक्ल

दरवाज़ा

प्रकाश

दस्‍तकें

नवीन रांगियाल

प्रतीक्षा

सौरभ अनंत

दरवाज़े

मानव कौल

दस्तकें

ममता बारहठ

अध्याय

प्रतिभा किरण

माँ

नवीन सागर

दस्तक

स्वप्निल श्रीवास्तव

आसमान की तरफ़ देखता हूँ

राघवेंद्र शुक्ल

ताले... रास्ता देखते हैं

विवेक चतुर्वेदी

अलविदा

कुलदीप कुमार

खुलना

वीरू सोनकर

दरवाज़ा

लनचेनबा मीतै

दरवाज़े

शिवम तोमर

दरवाज़ा

पीयूष ठक्कर

अतिरिक्त दरवाज़ा

ज्योति रीता

वापसी

विनीत राजा

एक दरवाज़ा

राजेंद्र पटेल

दस्तक

चंद्रकुमार

किवाड़

आलोक आज़ाद

दरवाज़े

प्रांजल धर