समकालीन पर उद्धरण
वर्तमान दौर के लिए भी
प्रासंगिक रहे और आधुनिक इतिहास के नियत परिप्रेक्ष्य से संबंधित रचनाओं से एक चयन।

प्रत्येक सद्ग्रंथ में दो तरह की बातें हुआ करती हैं, एक सामयिक, नश्वर, देशविशेष और कालविशेष से संबंध रखनेवाली और दूसरी शाश्वत, अविनश्वर, सब कालों और देशों के लिए समान रूप से उपयोगी और व्यवहार्य।

हिंदी में प्रेम के नाम पर लिखा बहुत कुछ जाता है पर उसका ताल्लुक़, ज़्यादातर, कर्तव्य, मोह या श्रद्धा से होता है

समकालीन उपन्यासों ने पहचाना है कि माँ पोषक हो सकती है तो शोषक भी। समकाल के कई उपन्यासों में माँ की कुटिलता और क्षुद्रता का अद्भुत चित्रण मिलता है।

हमारे वर्तमान दार्शनिक अध्ययन का मुख्य उद्देश्य, कठमुल्लावादी विचार को दूर करना ही होना चाहिए।

आजकल ऐसा बहुत साहित्य लिखा जा रहा है जिसे मैं 'स्त्री-रिझाऊ’ कहता हूँ; जिसको सुन करके औरतें बुल-बुल हो जाती हैं कि देखिए! हमारे अधिकारों की बात की जा रही है।
