Font by Mehr Nastaliq Web

बेरोज़गारी पर कविताएँ

बेकारी या बेरोज़गारी

आधुनिक राज-समाज की एक प्रमुख समस्या है। अपने निजी अनुभवों के आधार पर इस संकट की अभिव्यक्ति विभिन्न कवियों द्वारा की गई है। प्रस्तुत चयन में ऐसी ही कविताओं का संकलन किया गया है।

चाकरी में स्वप्न पाले कौन

कृष्ण मुरारी पहारिया

जिल्दसाज़

विनय सौरभ

नौकरी

प्रयाग शुक्ल

बेकारी

बी. गोपाल रेड्डी

हमने यह देखा

रघुवीर सहाय

हो-हो करता हुआ

प्रदीप सैनी

जीवन का दृश्य

अमर दलपुरा

सरूली

महेश चंद्र पुनेठा

कि

कुमार अम्बुज

कुछ बेरोज़गार लड़के

वंदना मिश्रा

फ़िलहाल मेरे पास

विमलेश त्रिपाठी

कटे हाथ

अशोक चक्रधर

बेरोज़गारी

कुमार अनुपम

नौकरी

मिथिलेश श्रीवास्तव

मैं प्रेम में

पंकज विश्वजीत

बेकारी के दिनों में

प्रदीप जिलवाने

अनवांटेड

निशांत

बेरोज़गारी में

प्रांजल धर

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए