चोर पर उद्धरण
चोरी करने वाला व्यक्ति
चोर कहा जाता है। चौर्यकर्म में निहित रहस्यात्मकता, कौतुक, दुस्साहसिकता के कारण कवियों द्वारा चोर पर्याप्त आकर्षण से कविता में तलब किए जाते रहे हैं।
बलवान के साथ विरोध रखने वाले को, साधन-हीन दुर्बल मनुष्य को, जिसका सब कुछ हरण कर लिया गया है उसको, कामी को तथा चोर को रात में नींद नहीं आती।
चोरी के माल के साथ पकड़ा हुआ चोर अब कह ही क्या सकता है?
वर्षा से दो विशेष प्रसन्न होते हैं—कवि और चोर।
दूसरों के विचार अथवा शोध, आविष्कार को जानकर, अपना बनाकर पेश करना—विचार की चोरी है।
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सेंध लगाते पकड़ा गया चोर भी यही कहता है कि वह दीवार में छेद करना सीख रहा था।
अस्तेय का अर्थ दूसरे के स्वामित्ववाली वस्तु का न लेना भर ही नहीं है। अपनी मानी जाती हो, पर अपने को उसकी ज़रूरत न हो, तथापि उसका उपयोग करना भी चोरी ही है।
एक चोरी करता है, एक चोरी में मदद करता है, एक चोरी का इरादा करता है, तीनों चोर हैं।
दूसरों के रचित शब्द और अर्थ का अपने प्रबंध में निवेश करना ‘हरण’, ‘चोरी’, ‘Plagiarism’ कहलाता है।