श्रीकांत वर्मा के उद्धरण


प्रेम में सिर्फ़ चुम्बन और सहवास और सुख-शैया ही नहीं, सब कुछ है, नरक है, स्वर्ग है, दर्प है, घृणा है, क्रोध है, द्वेष है, आनंद है, लिप्सा है, कुत्सा है, उल्लास है, प्रतीक्षा है, कुंठा है, हत्या है।
-
संबंधित विषय : प्रेम
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

मैंने अपनी कविता में लिखा है 'मैं अब घर जाना चाहता हूँ', लेकिन घर लौटना नामुकिन है; क्योंकि घर कहीं नहीं है।

जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया



मैं उन लोगों से घृणा करता हूँ जो उर्दू को सिर्फ़ एक मज़हब की भाषा मानते हैं। ऐसे लोग सिर्फ़ एक भाषा से घृणा नहीं करते, बल्कि इस देश से भी बैर करते हैं।
-
संबंधित विषय : भाषा
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया



कविता लिखते हुए मेरे हाथ सचमुच काँप रहे थे। तब मैंने कहानियाँ भी लिखनी आरंभ कीं। यह सोचकर कि रचना से रचना का यह कंपन कुछ कम होगा।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

हर व्यक्ति एक रहस्य है। वह स्वयं को समझ नहीं पाता। बहुत से लोग रास्ता दिखाते हैं। लेकिन कुछ लोगों को ही रास्ता दिखता है।
-
संबंधित विषय : रहस्य
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

कभी भी व्यक्तिगत दुखबोध की कविता एक अच्छी कविता का मानदंड नहीं हो सकती, वही कविता प्रामाणिक होगी जिसके सरोकार राष्ट्रीय दुखों से जुड़े होंगे।
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया



लेखक को यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ प्रश्न सार्वभौमिक होते हैं, कुछ निजी और कुछ राष्ट्रीय। वह किसी भी प्रश्न से कतरा नहीं सकता।
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

दरअस्ल, अस्मिता का प्रश्न अतीत के प्रश्न से जुड़ा हुआ है। कोई भी रचनाकार अपनी अस्मिता की तलाश अपनी परंपरा के बाहर जाकर नहीं कर सकता।
-
संबंधित विषय : सृजन
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया

मेरे मन पर मुक्तिबोध की आतंक-भरी छाप है, यंत्रणामय स्मृतियाँ हैं। मुक्तिबोध को याद करते हुए तकलीफ़ होती है।
-
संबंधित विषय : गजानन माधव मुक्तिबोध
-
शेयर
- सुझाव
- प्रतिक्रिया