निशांत कौशिक के बेला
22 मार्च 2025
मार्सेल प्रूस्त : स्मृति का गद्यकार
“…ख़ैर, प्रूस्त के बाद लिखने के लिए क्या ही बचता है!” (Virginia Woolf, Letters, Vol-2) वर्जीनिया वुल्फ़ की यह टिप्पणी, मानव चेतना, स्मृति और समय के बारे में मार्सेल प्रूस्त के लेखन की उस सिफ़त को रे
भाषा के घर में क्या है!
भाषा पर बात करते हुए मुख्यतः चार रुझान या रवैये दिखाई देते हैं। • व्युत्पत्ति : शब्द की उत्पत्ति, विकास और परिवर्तन का इतिहास ढूँढ़ना। • विधानवाद (Prescriptivism) : भाषा के ‘शुद्ध’ या ‘सही’ रू
29 दिसम्बर 2024
बिल्लियों की बेपरवाही पर आप क्या सोचते हैं!
न जाने कितनी सदियों से अब तक आदमी कुत्तों, बैलों, घोड़ों, मुर्ग़ों और अन्य जानवरों से घिरा रहा; लेकिन बिल्लियाँ इस पूरे इतिहास के ऊपर बैठकर, नीमबाज़ आँखों से धूप सेंक रही हैं। बिल्लियाँ चलता-धड़कत
08 दिसम्बर 2024
हान कांग के उपन्यासों में अवसाद
Is it true that human beings are fundamentally cruel? Is the experience of cruelty the only thing we share as a species? (The Prisoner 1990, Human Acts) हान कांग के उपन्यासों को पढ़ने की होड़ और
10 नवम्बर 2024
कवि बनने के लिए ज़रूरी नहीं है कि आप लिखें
‘बीटनिक’, ‘भूखी पीढ़ी’ और ‘अकविता’ क्या है, यह पहचानता हूँ, और क्यों है, यह समझता हूँ। इससे आगे उनपर विचार करना आवश्यक नहीं है। — अज्ञेय बीट कविता ने अमेरिकी साहित्य की भाषा को एक नया संस्कार दि
‘कई चाँद थे सरे-आसमाँ’ को फिर से पढ़ते हुए
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी के उपन्यास 'कई चाँद थे सरे-आसमाँ' को पहली बार 2019 में पढ़ा। इसके हिंदी तथा अँग्रेज़ी, क्रमशः रूपांतरित तथा अनूदित संस्करणों के पाठ 2024 की तीसरी तिमाही में समाप्त किए। तब से अब
तसनीफ़ हैदर की किताब 'नर्दबाँ और दूसरी कहानियाँ' के बारे में
तसनीफ़ हैदर की कहानियों का संग्रह ‘नर्दबाँ और दूसरी कहानियाँ’ मेरे सामने है। संग्रह में आठ कहानियाँ हैं। इस संग्रह ने हमारे समय के विरोधाभासी पहलुओं के संतुलित प्रस्तुतीकरण को बग़ैर मसीहाई और मलहमी
काफ़्का, नैयर मसूद और अब्सर्डिटी
कहानी में बंदूक़ नैयर मसूद की कहानियों से मेरा परिचय लगभग साल भर पहले हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय में फ़ारसी पढ़ाने वाले एक लघुकथा लेखक, जिन्होंने काफ़्का का अनुवाद किया था, जिसके पास अनीस और मर्सियाख़्
दिल्ली नायकों की आस में जीती है और उन्हीं की सताई हुई है
जिस तरह निर्मल वर्मा की सभी कृतियाँ बार-बार ‘वे दिन’ हो जाती हैं, कुछ उसी तरह मुझे भी इलाहाबाद के वे दिन याद आते हैं। — ज्ञानरंजन एक ...और मुझे दिल्ली के ‘वे दिन’ याद आते हैं, और बेतरतीब याद
12 जुलाई 2024
लिखना, सुई से कुआँ खोदना है
मेरे लिए, एक लेखक होने का मतलब है किसी व्यक्ति के अंदर छिपे दूसरे व्यक्ति की खोज करना; और उस दुनिया की भी जो वर्षों तक धैर्यपूर्वक काम करके उस व्यक्ति को बनाती है। जब मैं लेखन की बात करता हूँ, तो
विपश्यना जहाँ आँखें बंद करते ही एक संसार खुलता है
एक Attention is the new Oil अरबों-करोड़ों रुपए इस बात पर ख़र्च किए जाते हैं कि हमारे ध्यान का कैसे एक टुकड़ा छीन लिया जाए। सारा बाज़ार, ख़ासकर वर्चुअल संसार दर्शक (पढ़ें : ग्राहक) के इस ध्यान को भटका
Quotation न होते तब हम क्या करते!
एक “गोयम मुश्किल वगरना गोयम मुश्किल” हम रहस्य की नाभि पर हर रोज़ तीर मार रहे हैं। हम अनंत से खिलवाड़ करके थक गए हैं। हम उत्तरों से घिरे हुए हैं और अब उनसे ऊबे हुए भी। हमारी जुगतें और अटकलें भी एक
किताब उसकी है जिसने उसे पढ़ा, उसकी नहीं जिसके किताबघर में सजी है
एक हर किताब अपने समझे जाने को एक दूसरी किताब में बताती है। —वागीश शुक्ल, ‘छंद छंद पर कुमकुम’ जब बाज़ार आपको, आपका निवाला भी चबा कर दे रहा है; तब क्या पढ़ें और किसको पढ़ें? एक अच्छा सवाल है। को
सोडा, बन-मस्का और वाल्टर बेन्यामिन
सोडा और बन-मस्का पुणे के कैंप इलाक़े में साशापीर रोड पर एक कम प्रचलित शरबतवाला चौक है। शरबत अरबी शब्द है, शराब भी इसी से निकला है। शरबतवाला चौक पर 1884 में फ़्लेवर्ड सोडा कंपनी की शुरुआत हुई। पुणे