लिखना, सुई से कुआँ खोदना है
निशांत कौशिक
12 जुलाई 2024

मेरे लिए, एक लेखक होने का मतलब है किसी व्यक्ति के अंदर छिपे दूसरे व्यक्ति की खोज करना; और उस दुनिया की भी जो वर्षों तक धैर्यपूर्वक काम करके उस व्यक्ति को बनाती है।
जब मैं लेखन की बात करता हूँ, तो मेरा आशय उपन्यास, कविता या साहित्यिक परंपरा नहीं है, बल्कि ज़ेहन में एक ऐसा व्यक्ति है जो ख़ुद को एक कमरे में बंद कर लेता है। मेज़ के सामने बैठ जाता है, भीतर झाँकना शुरू कर शब्दों से एक नई दुनिया बनाना शुरू करता है।
यह आदमी या यह औरत, टाइपराइटर का इस्तेमाल कर सकते हैं, कंप्यूटर की मदद ले सकते हैं, या मेरी तरह तीस वर्षों तक फ़ाउंटेन पेन से काग़ज़ पर हाथ से लिख सकते हैं। लिखते हुए—वह कॉफ़ी, चाय या सिगरेट पी सकते हैं। कभी-कभी वह अपनी मेज़ से उठ सकते है और खिड़की से बाहर सड़क पर खेल रहे बच्चों को देख सकते हैं।
यदि वह ख़ुशक़िस्मत हैं तो पेड़ों को, किसी मंज़र को या एक अँधेरी दीवार को देख सकते हैं। वह मेरी तरह कविता, नाटक या उपन्यास लिख सकते हैं। ये सभी कामकाज और लेखन मेज़ के सामने बैठने और धैर्यपूर्वक अपने भीतर झाँकने के बाद आते हैं।
लिखना, इन अंदरूनी अनुभवों को शब्दों में बदलना—एक व्यक्ति का धैर्य, ज़िद और ख़ुशी के साथ ख़ुद से गुज़रते हुए एक नई दुनिया की खोज करने की क्षमता का नाम है।
अपनी मेज़ पर बैठकर, धीरे-धीरे ख़ाली पन्नों पर नए शब्द जोड़ते हुए—जैसे-जैसे दिन, महीने और साल बीतते गए, मुझे लगता रहा कि मैं अपने लिए एक नई दुनिया तामीर कर रहा हूँ। मानो मैं अपने भीतर एक और व्यक्ति को प्रकट कर रहा हूँ—जैसे कोई पत्थर-दर-पत्थर पुल या गुंबद बनाता है। इसी तरह हम लेखकों के लिए यह पत्थर—शब्द हैं।
उन्हें छूकर, जब हम उन्हें अपने हाथों में पकड़ते हैं—तो हम उन तरीक़ों को महसूस करते हैं, जिनसे वे एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कभी उन्हें दूर से देखकर, तो कभी उन्हें अपनी उंगलियों और क़लम की नोंक से सहलाकर और उनके वज़न को तौलकर, हम दृढ़ता और धैर्य की नई दुनिया तामीर करते हैं।
मेरे लिए, लेखन का रहस्य अचानक और अनजान जगह से आई प्रेरणा या इल्हाम नहीं बल्कि दृढ़ता और धैर्य है। मेरे मुताबिक़—तुर्की की वह ख़ूबसूरत कहावत; “सुई से कुआँ खोदना” लेखकों को ही ज़ेहन में रखकर कही गई होगी। पुरानी कहानियों के फ़रहाद के उस धैर्य को मैं पसंद करता हूँ और समझता हूँ, जिसने अपने प्यार के लिए पहाड़ों को चीरा।
मेरे उपन्यास My Name is Red में, जब मैंने ईरानी लघुचित्रकारों (Miniaturists) के बारे में ज़िक्र किया, जिन्होंने वर्षों तक एक ही घोड़े का चित्र बनाकर उसे पूरी शिद्दत से ज़ेहन में इस क़दर उतार लिया था कि आँखों पर पट्टी बाँधकर भी वह एक सुंदर घोड़े का चित्र बना सकते थे, तो मुझे पता था कि मैं अपने लेखन के पेशे और अपने जीवन के बारे में बात कर रहा था।
अपने जीवन को धीरे-धीरे दूसरों की कहानी के रूप में बताने में सक्षम होने और अपने भीतर कहने की इस शक्ति को महसूस करने के लिए—मुझे ऐसा लगता है कि लेखक को मेज़ पर इस कला और शिल्प को तराशने के लिए धैर्यपूर्वक वर्षों का समय देना होगा और एक पुर-उम्मीद हासिल करनी होगी।
किसी के इर्द-गिर्द हमेशा घूमने वाले और किसी के पास कभी न फटकने वाले प्रेरणा के फ़रिश्ते उम्मीद और आत्मविश्वास के पक्ष में होते हैं। और यह तब, जब लेखक सबसे अकेला होता है—जब वह अपने प्रयासों, सपनों और लेखन के मूल्य के प्रति सबसे अधिक शंकाग्रस्त होता है—जब वह सोचता है कि यह कहानी केवल उसकी अपनी कहानी है, और इन्ही क्षणों में वह फ़रिश्ता उसे कहानियों, दृश्यों और स्वप्नों का इल्हाम देता है जिससे वह लेखक एक दुनिया गढ़ता है।
अपने पूरे जीवन को लेखन में खपा चुकने के बाद मैं उन पलों के बारे में सोचकर हैरान होता हूँ, जब मुझे सबसे अधिक ख़ुशी देने वाले वाक्य, कल्पनाएँ और पन्ने दरअसल मेरे ज़ेहन से नहीं उपजे थे। मानो किसी और शक्ति ने उन्हें ढूँढ़ा और मुझे पूरी उदारता से दे दिया।
जैसा कि आप जानते हैं, हम लेखकों से सबसे अधिक बार पूछा जाने वाला प्रश्न—सबसे पसंदीदा प्रश्न—यह है कि आप क्यों लिखते हैं?
मैं लिखता हूँ क्योंकि लिखना मेरे भीतर से उपजता है। लिखता हूँ, क्योंकि मैं बाक़ियों की तरह काम नहीं कर सकता। लिखता हूँ क्योंकि मैं वैसी किताबों को पढ़ना चाहता हूँ, जैसी किताबें मैं लिखता हूँ। मैं लिखता हूँ क्योंकि मेरे भीतर आपके लिए, आप सबके प्रति क्रोध है। एक कमरे में क़ैद रहकर दिन भर लिखना मुझे भाता है, इसीलिए लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं वास्तविक जीवन में, केवल इसे बदलकर ही भाग ले सकता हूँ। मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि दूसरे—बाक़ी सभी, पूरी दुनिया यह जाने कि हमने इस्तांबुल में, तुर्की में किस तरह का जीवन जिया और जी रहे हैं। मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे काग़ज़, क़लम और स्याही की महक पसंद है। मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं साहित्य में, उपन्यास की कला में, किसी भी अन्य चीज़ से ज़्यादा विश्वास करता हूँ।
मैं लिखता हूँ क्योंकि यह एक आदत है, एक जुनून है। मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे भुला दिए जाने का डर है। मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे लेखन से मिलने वाला गौरव और जिज्ञासा पसंद है। मैं अकेले होने के लिए लिखता हूँ। शायद मैं समझने के लिए लिखता हूँ कि मैं हर किसी पर इतना क्रोधित क्यों हूँ! मैं इसलिए लिखता हूँ क्योंकि मुझे पढ़ा जाना पसंद है।
मैं इसलिए लिखता हूँ क्योंकि एक बार जब मैं कोई उपन्यास, निबंध या कोई पन्ना शुरू कर देता हूँ, तो मैं उसे पूरा करना चाहता हूँ। मैं इसलिए लिखता हूँ क्योंकि हर कोई मुझसे लिखने की उम्मीद करता है। मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं पुस्तकालयों की अमरता और उनकी अलमारियों में क़रीने से सजी मेरी किताबों पर बचकाना विश्वास करता हूँ।
मैं लिखता हूँ क्योंकि जीवन, दुनिया और सब कुछ अविश्वसनीय रूप से सुंदर और आश्चर्यपूर्ण है। मैं लिखता हूँ क्योंकि जीवन के सारे सौंदर्य और समृद्धि को शब्दों में बयान करना बहुत ख़ुशगवार है। मैं कहानियाँ सुनाने के लिए नहीं, बल्कि कहानियाँ बनाने के लिए लिखता हूँ। मैं इस अहसास से छुटकारा पाने के लिए लिखता हूँ कि मुझे हमेशा कहीं पहुँचना था, बिलकुल एक सपने की तरह और मैं वहाँ नहीं पहुँच सकता।
मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं ख़ुश नहीं रह सका। मैं खुश रहने के लिए लिखता हूँ।
ओरहान पामुक ने 7 दिसंबर 2006 को स्वीडिश अकादेमी, स्टॉकहोम में अपना नोबेल व्याख्यान—Babamın Bavulu (My Father's Suitcase)—दिया था। यहाँ उस व्याख्यान के कुछ हिस्सों का मूल तुर्की भाषा से अनुवाद किया गया है।
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