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हान कांग के उपन्यासों में अवसाद

Is it true that human beings are fundamentally cruel? Is the experience of cruelty the only thing we share as a species?

(The Prisoner 1990, Human Acts)

हान कांग के उपन्यासों को पढ़ने की होड़ और उन पर चर्चा अब ढलान पर है। पाठक उफ़्फ़-अश करके आगे बढ़ चुके हैं। ऐसे में हान कांग पर यह देर से शुरू की गई बात है। मुझे उनको पढ़ते हुए सिलसिलेवार बहुत कुछ याद आता है। सत्ता और अवसाद, विश्व साहित्य में कोई अछूता विषय नहीं है। भीतर कुछ वर्षों में ही मुझे डच युवा लेखिका मारीके ल्यूकस रेज़नेवेल्ड का ‘द डिस्कम्फ़र्ट ऑफ़ ईवनिंग’ और पॉल लिंच का ‘प्रॉफ़ेट सॉन्ग’ याद आता है।

लेकिन हान कांग ने उस अवसाद को पैरों के बल खड़ा कर दिया है, जिसका उत्स हम कभी जीवन की निरर्थकता के बाहर खोज ही नहीं पा रहे थे। वह निरर्थकता जिसमें ज़िंदगी की ऊलजलूलियत अपने वैभव से एक कोने में बैठी है और उमस में सड़कों पर उदासीन फिरता फ्रेंच अस्तित्ववाद का कामूई किरदार आर्थर म्योरसो उर्फ़ मार्सेलो मास्त्रॉयानी बेख़बर है कि माँ की मृत्यु आज हुई कि कल। 

इस अजब ढंग के दार्शनिक लपटे ने निष्ठुरता और उदासीनता का अजब शरबत तैयार किया। दफ़्तरों में बैठा हर नागरिक सिसिफस हो चुका था। सिनिसिज़्म एक लक्षण न होकर सर का ताज हो गया।

हान कांग के किरदार अपनी जगहें अभी भी खोज रहे हैं। उनका कोई ‘अंतिम अरण्य’ नहीं है। वह जो जगहें अक्सर खोज लेते हैं वह आत्मघाती हैं। लेकिन वह अपनी पूरी बेचैनियों में ऐसी मुक्ति और स्थायित्व तलाशते हैं जो पढ़ते हुए हमारे लिए भीषण असहजता पैदा कर सकती है। इसीलिए उनके संसार में हमें उन्हीं खिड़कियों से जाना होता है जो हान कांग हमारे लिए रचती हैं—जैसे अवसाद, चुप्पियाँ और भाषा।

‘द वेजिटेरियन’ (The Vegetarian) उपन्यास के तीन हिस्से हैं। यह शाकाहार का प्रचार करने वाला उपन्यास नहीं है। पहले अध्याय से यह सत्ता-विरुद्ध उपन्यास की तरह प्रतीत होता है, लेकिन वह इसका केवल एक पहलू है। यह अवसाद के माध्यम से समानांतर संसार भी रचता है और वही इसका सबसे महत्त्वाकांक्षी पक्ष भी है। हर पुस्तक के बाबत ‘मोरल ऑफ़ दी स्टोरी’ और ‘टेकहोम मैसेज’ पूछने की आतुरता इस उपन्यास के सामने कुछ बेमानी हो सकती है।  
 
‘द वेजिटेरियन’ की नायिका योंग-हे ने दुस्वप्न में देखे हुए पशुसंहार और रक्तरंजित लोथड़ों के बाद माँस खाना छोड़ दिया है। चुनाव और तय करने की स्वतंत्रता वाले हमारे समय में यह बात कितना औचित्य रखती है? चेखव की कहानी ‘एक क्लर्क की मृत्यु’ एक सरकारी क्लर्क अधिकारी के सामने छींक देता है और अधिकारी से बेशुमार माफ़ियाँ माँगता है। चेखव का यह नायक पैरानॉयड है और उसका भय नौकरशाही के प्रति है। योंग-हे का निर्णय से भय और सत्ता के उन वह परतें उघड़ती हैं जो हम नहीं जानते कि शुरू से वहीं थी।

योंग-हे का निर्णय अवज्ञा और चुनौती की तरह (ख़ासकर पति और पिता के लिए) देखा जाना पहले अध्याय के सबसे बड़े हिस्से को घेरता है। क्या माँस खाना छोड़ देना इस क़दर बीमार कर सकता है जिस तरह उपन्यास में योंग-हे बदहाल हो जाती है? वह अब जीवन के रोज़मर्रापन के प्रति सुन्न है, उसकी अस्वीकृति में किसी तरह का दावा और ज़ोर-आज़माइश नहीं है। एक साफ़-सीधी मनाही है।

यह निष्कवच या भेद्य (Vulnerable) होने का निर्णय है। जिसमें दैहिक सीमाओं से मुक्ति का प्रयास है। जिसमें दुःस्वप्नों की शृंखला से पतित हो चुके दैहिक पावित्र्य तथा अस्मिता का ह्रास है। इस प्रयास में अवसाद का तत्व है। यह देह की जिल्द छोड़कर कुछ और हो जाने की असंभाव्य तथा अवसादग्रस्त आकांक्षा है। यह कोई आदर्श स्थिति नहीं है, इसमें स्वतंत्रता का वैभव नहीं है। यह मुक्त होने की पैथोलॉजिकल कोशिश है। यह आघात की स्मृति पर प्रतिक्रिया है। रेज़नेवेल्ड के जिस उपन्यास का ऊपर ज़िक्र है उसमें भी शरीर के पावित्र्य की धारणा को पूरी तरह भंग कर दिया जाता है।  

'कुछ और हो जाने' की इच्छा और आकर्षण के प्रति संकेत अगले अध्याय 'Mongolian mark' में मिलता है, जहाँ योंग-हे एक पुरुष के शरीर पर बने फूल के प्रति स्वयं को आसक्त महसूस करती है। जिसकी संपूर्ण अभिव्यक्ति ‘द वेजिटेरियन’ के अंतिम अध्याय ‘Flaming trees’ में होती है, जहाँ वह पूरी तरह मानसिक रोगी हो चुकी है और अपने तन-बदन से उगते फूल-पत्तियों का बारम्बार ज़िक्र करती है। 

इस स्थिति का निकष यद्यपि प्रकृति से एकाकार हो जाने जैसा रूमानी नहीं है, बल्कि यह एक पैथोलॉजिकल क्राइसिस है। योंग-हे की बहन (In Hye) जो उसका ख़याल रखती है, ख़ुद भी एक स्वयं को भी इस स्थिति में पहुँचा हुआ पाती है, एंबुलेंस से उसके झाँकने के दृश्य को हान कांग इस तरह लिखती हैं—

Quietly, she breathes in. The trees by the side of the road are blazing, green fire undulating like the rippling flanks of a massive animal, wild and savage. In-hye stares fiercely at the trees. As if waiting for an answer. As if protesting against something. The look in her eyes is dark and insistent. 

(The Vegetarian, Flaming trees)
   
हान कांग इसी क्रम में उपन्यास ‘ह्यूमन एक्ट्स’ (Human Acts)—1980 के ग्वांगजू विद्रोह पर केंद्रित है। यह उपन्यास सत्तासंघर्ष में विस्मृति के ख़िलाफ़ एक आख्यान है। वह घटनाएँ और पीड़ाएँ जो अपनी कथा खो चुकी हैं, लेकिन उनकी पीड़ा, पीढ़ी-दर-पीढ़ी लौट रही है, जहाँ आघात तथा अवसाद बाक़ी हैं लेकिन उनकी नब्ज़ नहीं मिलती। यह उपन्यास उसी विस्मृत हो चुके विद्रोह का एक ग़ैर-औपचारिक दस्तावेजीकरण है।  

यहाँ मृत्यु का विवरण मृत्यु से भी पार चला जाता है। मृत अपने संगियों को कब्रों से देख रहे हैं। उपन्यास में, एक संपादक Eun-sook यह भूलने की कोशिश करती है कि एक पुलिस अधिकारी ने उसे एक प्रतिबंधित किताब के अनुवादक के बारे में पूछताछ करने पर सात थप्पड़ मारे थे, जिसे वह एक-एक कर भूलने की कोशिश करती है। उपन्यास में इसी तरह देह, स्मृति को सहेजने और जिलाए रखने का प्रतीक है, जैसे अगली पंक्तियों में, जहाँ जीवित का शरीर, मृतक का स्मारक है।

After you died I couldn't hold a funeral,
so these eyes that once beheld you became a shrine
These ears that once heard your voice became a shrine

(Snowflakes, 104, Human acts)

नोबेल पुरस्कार में लेखिका के जिस साहित्यिक कौशल का ज़िक्र हुआ—वह है उनके ‘गद्य में मौजूद काव्यात्मक तत्व’। उनके एक और उपन्यास ‘दि व्हाइट बुक’ में यह सबसे अधिक नुमायाँ है। उनकी भाषा की काव्यात्मक गुणवत्ता का इस्तेमाल शिल्पगत कौशल के अलावा अभिव्यक्ति के खंडित तथा भंगुर स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए हुआ है।  

Greek Lessons उपन्यास में दो किरदार हैं। एक शिक्षक जो प्राचीन यूनानी पढ़ाता है और जिसकी आँखें वंशानुगत बीमारी के चलते ख़राब होती जा रही हैं और दूसरी वह औरत जो उससे प्राचीन यूनानी सीख रही है। उपन्यास में यह खुलता है कि औरत की रूचि ग्रीक साहित्य और इतिहास में नहीं है, बल्कि इस प्राचीन यूनानी और अब मृत भाषा में अभिव्यक्त कर पाने की इच्छा के रूप में विकसित हो रही है। निजी दुखों से अवसादग्रस्त दो किरदार एक मृत भाषा के बहाने एक दूसरे के प्रति खुलते हैं।

If snow is the silence that falls from the sky, perhaps rain is an endless sentence

(Sunspots, Greek lessons)

एक स्विस दार्शनिक के आलेख का शीर्षक याद आता है कि आधुनिक संसार हमें किस तरह अवसादग्रस्त कर रहा है। हर दिशा से आती युद्ध की ख़बर वाले इस समय में क्या मृत्यु और हिंसा सिर्फ़ बाहर ही घटती रहेगी? यद्यपि सभी कलाएँ अपने अलिखित उद्देश्यों में उम्मीद की ही पक्षधर हैं, बल्कि स्वयं हान कांग अपने साक्षात्कारों में यह दोहराती हैं लेकिन उनके किरदारों में विश्वदृष्टि और शांतिसूत्र देने की कोई जल्दबाज़ी नहीं है।

क्या Greek lessons उस स्थिति की तरफ़ इशारा करती है जहाँ उखड़े हुओं को पनाह मिलती है। जहाँ आँख का अर्थ आँख नहीं है और जो बात कही जानी है उसके लिए कहीं पीछे, किसी दबी, विस्मृत दुनिया से शुरुआत करनी होगी? यह विस्मृत दुनिया सबकी है—जिन्हें नाम देकर, चेहरा देकर हान कांग हमारे समक्ष रखती हैं।

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