नवीन सागर के उद्धरण

हम अपने बारे में इतना कम और इतना अधिक जानते हैं कि प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में।
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अनंत अपनी मृत्यु में रहते हैं इतने धुँधले कि हमारी झलक में बार-बार जन्म लेते हैं संसार!
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बातों में होते हैं हम जितना उतने से कई गुना कहीं और होते हैं।
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संबंधित विषय : आत्म
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