तारे पर उद्धरण
रात के आकाश में तारों
की टिमटिमाहट स्वयं में एक कला-उत्स का वैभव रचती है और आदिम समय से ही मानव उनके मोहपाश में ऐसा बँधा और बिंधा रहा है कि उसे अपने आग्रहों-दुराग्रहों का साक्षी बनाता रहा है। प्रस्तुत चयन में तारे को निमित्त रखकर अपनी बात कहती कविताओं का संकलन किया गया है।

भाषा की कितनी दयनीय दरिद्रता है! सितारों की तुलना हीरे से करना!

…सितारे सिर्फ़ सुंदर ही नहीं, वे जंगल के पेड़ों की तरह हैं। वे जीवित हैं और साँस ले रहे हैं और मुझे देख रहे हैं।

मुझे निश्चित रूप से कुछ भी नहीं मालूम है। लेकिन तारों को देख मैं स्वप्न देखता हूँ।

किसी दिन मृत्यु हमें एक अन्य सितारे तक ले जाएगी।

मैं एक पंछी से सीखूँगा किस तरह गाना चाहिए न कि हज़ार तारों को सिखाऊँगा कि कैसे न नाचा जाए।

अपने तेज़ की अग्नि में जो सब कुछ भस्म कर सकता हो, उस दृढ़ता का, आकाश के नक्षत्र कुछ बना-बिगाड़ नहीं सकते।