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थिएटर पर कविताएँ

जहाँ जीवन को ही रंगमंच

कहा गया हो और माना जाता हो कि पहली नाट्य प्रस्तुति जंगल से शिकार लिए लौटे आदिम मानवों ने वन्यजीवों के हाव-भाव-ध्वनि के साथ दी होगी, वहाँ इसके आशयों का भाषा में उतरना बेहद स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत चयन नाटक, रंगमंच, थिएटर, अभिनय, अभिनेता के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं में से किया गया है।

गालियाँ

सविता भार्गव

अभिनय क्या आत्महत्या है

नंदकिशोर आचार्य

देखनेवाला मैं

नवीन सागर

भरतवाक्य

ऋतुराज

अभिनय

मंगलेश डबराल

थिएटर

आलोकधन्वा

मंच

अनीता वर्मा

आफ़्टर थर्ड बेल

अविनाश मिश्र

थिएटर करना

शिरीष कुमार मौर्य

अभिनेता

विपिन कुमार अग्रवाल

मंच पर

अनीता वर्मा

एथेंस 2017

गिरिराज किराडू

सूत्रधार

हरि मृदुल

मंच

विजय बहादुर सिंह

अभिनेता

सुमित त्रिपाठी

यह नाटक नहीं

गोबिंद प्रसाद

पूर्वरंग

प्रियदर्शन

मेरे साथ

वेणु गोपाल

नाटक के भीतर नाटक

नीलेश रघुवंशी

नाटक

संजीव मिश्र

नाटक

नीलाभ अश्क

इस नाटक का नाम

पंकज सिंह

नया एक आख्यान

शंभु यादव

एक पात्रीय नौटंकी

रमेशदत्त दुबे

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