Font by Mehr Nastaliq Web

थिएटर पर उद्धरण

जहाँ जीवन को ही रंगमंच

कहा गया हो और माना जाता हो कि पहली नाट्य प्रस्तुति जंगल से शिकार लिए लौटे आदिम मानवों ने वन्यजीवों के हाव-भाव-ध्वनि के साथ दी होगी, वहाँ इसके आशयों का भाषा में उतरना बेहद स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत चयन नाटक, रंगमंच, थिएटर, अभिनय, अभिनेता के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं में से किया गया है।

नाटक मनुष्य के जन्म के साथ उत्पन्न हुआ है।

रघुवीर सहाय

नाटक में शब्दों से मोह हो जाता है। यह फ़ालतू का मोह जानलेवा हो जाता है। अभिनेता के लिए भी, निर्देशक के लिए भी, यह बात मुझे रंजीत कपूर ने बताई थी।

स्वदेश दीपक

मैं अपने नए नाटक के पहले मंचन के लिए दो टिकट भेज रहा हूँ; एक दोस्त को ले आइए। अगर आपके पास कोई हो।

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ

संबंधित विषय