थिएटर पर ब्लॉग

जहाँ जीवन को ही रंगमंच

कहा गया हो और माना जाता हो कि पहली नाट्य प्रस्तुति जंगल से शिकार लिए लौटे आदिम मानवों ने वन्यजीवों के हाव-भाव-ध्वनि के साथ दी होगी, वहाँ इसके आशयों का भाषा में उतरना बेहद स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत चयन नाटक, रंगमंच, थिएटर, अभिनय, अभिनेता के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं में से किया गया है।

कुँवर नारायण की कविता और नाटकीयता

कुँवर नारायण की कविता और नाटकीयता

नाटक केवल शब्दों नहीं, अभिनेता की भंगिमाओं, कार्यव्यापार और दृश्यबंध की सरंचना के सहारे हमारे मानस में बिंबों को उत्तेजित कर हमारी कल्पना की सीमा को विस्तृत कर देते हैं और रस का आस्वाद कराते हैं। जिस

अमितेश कुमार

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

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