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एलायस कनेटी

1905 - 1994

एलायस कनेटी के उद्धरण

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शराबियों के भ्रम हमें यह देखने का मौक़ा देते हैं कि भीड़ किसी व्यक्ति के दिमाग़ में कैसे दिखती है।

जिन बातों को हम भूल जाते हैं वे स्वप्न में हमसे मदद की भीख माँगती हैं।

अपनी ज़िंदगी लिखते वक़्त हर पन्ने पर ऐसी बात होनी चाहिए जो नई हो।

दूसरों के अनुसार ख़ुद को ढ़ालने से सबसे पहले इंसान उबाऊ हो जाता है।

ग़लत धारणाओं को छोड़ने में समय लगता है। अचानक से ऐसा होने पर वे मन में सड़ने लगती हैं।

एक भीड़ तब तक रहती है जब तक उसके पास कोई अधूरा लक्ष्य होता है।

महान विचारों को फिर से कहना ज़रूरी है, बिना यह जाने कि वे पहले से कहे जा चुके हैं।

मनुष्य को सबसे अधिक डर अनजान के स्पर्श से लगता है।

मृत्यु एक घोटाले जैसी है। मशीन चलती रहती है और हम सब बंधक बन जाते हैं।

जो मृत्यु के प्रति जुनूनी है, उसे वह एक अपराधबोध में डाल देती है।

अनंत काल में हर चीज़ बस शुरू हो रही होती है।

कुछ भी मत समझाओ। अपनी बात को रखो। कहो। और चले जाओ।

पुनः विस्मय का अनुभव करो।

सीखना, कुछ बातों को नज़रअंदाज़ करने की कला है।

दूसरों की उपस्थिति का मृत हो जाना ही बुढ़ापा है और कुछ नहीं।

सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि हम ख़ुद को किससे जोड़कर देखते हैं।

लिखने की प्रक्रिया में एक अनंतता है। यह चाहे हर रात रुक जाए, यह एक सतत प्रक्रिया है।

समझना, जैसा हम समझते हैं, वह ग़लतफ़हमी है।

पाँच मिनट में पृथ्वी एक रेगिस्तान बन जाएगी, और तुम किताबों से चिपके रहते हो।

सफलता केवल तालियों को सुनती है। बाक़ी सबके लिए वह बहरी है।

दुनिया में दुःख इसलिए है क्योंकि हम भविष्य की ओर बहुत कम देखते हैं।

जो कुछ भी हमारी स्मृति में अंकित होता जाता है उसमें आशा का एक कण छुपा होता है, चाहे वह निराशा से ही क्यूँ भरा हुआ हो।

मैं अपने मृतकों की यादों से इतना भरा हूँ कि अब और किसी की मृत्यु के लिए मेरे पास कोई जगह नहीं बची।

शब्द बूढ़े नहीं होते, केवल लोग बूढ़े हो जाते हैं, यदि वे बार-बार वही शब्द इस्तेमाल करते हैं।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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