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नदी पर कविताएँ

नदियों और मानव का आदिम

संबंध रहा है। वस्तुतः सभ्यता-संस्कृति का आरंभिक विकास ही नदी-घाटियों में हुआ। नदियों की स्तुति में ऋचाएँ लिखी गईं। यहाँ प्रस्तुत चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है, जिनमें नदी की उपस्थिति और स्मृति संभव हुई है।

पार

नरेश सक्सेना

आज नदी बिल्कुल उदास थी

केदारनाथ अग्रवाल

कितना बहुत है

विनोद कुमार शुक्ल

बाँधो न नाव इस ठाँव बंधु

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

पार करना

प्रदीप सैनी

नदी, पहाड़ और बाज़ार

जसिंता केरकेट्टा

सभ्यताओं के मरने की बारी

जसिंता केरकेट्टा

होना

सुघोष मिश्र

आख़िरी चिट्ठी

बाबुषा कोहली

हवा की बाँहें पसारे

कृष्ण मुरारी पहारिया

टूटी नाव

गोविंद निषाद

नदी में इतिहास

गोविंद निषाद

नदी और नगर

ज्ञानेंद्रपति

नदी

कृष्ण कल्पित

स्मृति

गोविंद निषाद

नदियों के किनारे

गोविंद निषाद

उगाए जाते रहे शहर

राही डूमरचीर

निषादों की गली

गोविंद निषाद

सावन में यह नदी

कृष्ण मुरारी पहारिया

अकेला पहाड़

सौरभ अनंत

नदी

नवीन सागर

नदी और पहाड़

शिवानी कार्की

बैठा हूँ इस केन किनारे

केदारनाथ अग्रवाल

एक बजे के बाद

व्लादिमीर मायाकोव्स्की

नदियाँ

चेस्लाव मीलोष

केन किनारे

अजित पुष्कल

नदी

अखिलेश सिंह

कामा

सौरभ अनंत

वह चिड़िया जो

केदारनाथ अग्रवाल

गाडा टोला

राही डूमरचीर

नदी

गोविंद द्विवेदी

आना अस्थि बनकर

गोविंद निषाद

दुःख

गोविंद निषाद

रूप-नारान के तट पर

रवींद्रनाथ टैगोर

माँझी! न बजाओ बंशी

केदारनाथ अग्रवाल

नाव डूबती हुई

आशुतोष प्रसिद्ध

दरिया के तट पर

सरदार पूर्ण सिंह

मणिकर्णिका

कुमार मंगलम

नदी के नाम

परमिंदरजीत

सच बोलो, किसकी कन्या हो

कृष्ण मुरारी पहारिया