Font by Mehr Nastaliq Web

आत्म पर कविताएँ

आत्म का संबंध आत्मा

या मन से है और यह ‘निज’ का बोध कराता है। कवि कई बातें ‘मैं’ के अवलंब से कहने की इच्छा रखता है जो कविता को आत्मीय बनाती है। कविता का आत्म कवि को कविता का कर्ता और विषय—दोनों बनाने की इच्छा रखता है। आधुनिक युग में मनुष्य की निजता के विस्तार के साथ कविता में आत्मपरकता की वृद्धि की बात भी स्वीकार की जाती है।

गिरना

नरेश सक्सेना

हिंदू वाली फ़ाइल्स

बच्चा लाल 'उन्मेष'

अपने बजाय

कुँवर नारायण

धार

अरुण कमल

एक मुर्दे का बयान

श्रीकांत वर्मा

अपने को देखना चाहता हूँ

चंद्रकांत देवताले

वह जहाँ है

अखिलेश सिंह

भव्यता के विरुद्ध

रविशंकर उपाध्याय

दर्द

सारुल बागला

मैं झुकता हूँ

राजेश जोशी

मेरा गला घोंट दो माँ

निखिल आनंद गिरि

एक संपूर्णता के लिए

पंकज चतुर्वेदी

दुर्दिन है आज

ओसिप मंदेलश्ताम

मैं

श्रीकांत वर्मा

मन न मिला तो कैसा नाता

कृष्ण मुरारी पहारिया

मेरे 'मैं' के बारे में

लवली गोस्वामी

बहने का जन्मजात हुनर

गीत चतुर्वेदी

ऊब

पाब्लो नेरूदा

मैंने जीवन वरण कर लिया

कृष्ण मुरारी पहारिया

एक धुन

आशीष त्रिपाठी

जन-गण-मन

रमाशंकर यादव विद्रोही

स्वप्न में

रॉबर्तो बोलान्यो

ज़िंदा बच गया

तादेऊष रूज़ेविच

आत्मलीन

ओक्ताविओ पाज़

कौन?

ज़ाविएर अब्रील

एक तिनका

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

कैसे भूलूँगा

शिवम चौबे

कुछ बिखरी बातें

अखिलेश सिंह

घर की याद

मारीना त्स्वेतायेवा

ज़िंदगी क्या है?

एरिष फ्रीड

कुछ वैसा ही

निकानोर पार्रा

स्वीकृति

अलेक्सांद्र ब्लोक

जापानी कविता का अनुकरण

विलियम बटलर येट्स