साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद
किसी काव्य का श्रोता या पाठक जिन विषयों को मन में लाकर रति, करुणा, क्रोध, उत्साह इत्यादि भावों तथा सौंदर्य, रहस्य, गांभीर्य आदि भावनाओं का अनुभव करता है वे अकेले उसी के हृदय से संबंध रखने वाले नहीं होते; मनुष्य-मात्र की भावात्मक सत्ता पर प्रभाव डालने
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
तदैजति तन्नैजति-ईशावास्योपनिषद् आत्म-बोध और जगद्-बोध के नीचे ज्ञानियों ने गहरी खाई खोदी पर हृदय ने कभी उसकी परवा न की; भावना दोनों की एक ही मानकर चलती रही। इस दृश्य जगत् के बीच जिस आनंद-मंगल की विभूति का साक्षात्कार होता रहा, उसी के स्वरूप की नित्य और