संस्कृत कविता पर उद्धरण
संस्कृत के महत्त्वपूर्ण
कवियों की श्रेष्ठ और लोकप्रिय कविताओं से एक चयन।
कालिदास विरह के कवि नहीं हैं।
शब्द और अर्थ दोनों मिलकर ही काव्य कहलाते हैं। यह काव्य दो प्रकार का होता है : गद्य और पद्य। संस्कृत, प्राकृत और इनसे भिन्न अपभ्रंश—भाषा के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है।
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सीता की जीनवगाथा से तादात्म्य प्राप्त करने वाले भवभूति के उत्तररामचरित की करुणा, सीता को दुःख देनेवाले व्यक्ति के प्रति—कवि की मानवता का विरोध-भाव था।
रामायण और महाभारत—ये दोनों इतिहास-काव्य हमारी संपूर्ण विरासत के मेरुदंड हैं।
कवि वाल्मीकि की प्रतिभा ने जब सात कांड रामायण की रचना की, तब काव्य जगत् में एक नए रस का मार्ग खुल गया।
अपनी दृष्टि के कारण नियति द्वारा दिए गए दारुण आघातों तथा विकट संकट की घड़ियों में भी, वाल्मीकि मनुष्य के भीतर के स्नेह, आस्था और विश्वास के स्त्रोत को खोज निकालते हैं।
विशेषता बताने की इच्छा से इष्ट वस्तु का निषेध-सा करना आक्षेप अलंकार कहलाता है।
वाल्मीकि की कल्पना अपनी व्याप्ति और अंतःस्पर्श में अनुपम है।
वाल्मीकि जैसे बड़े कवि की महती प्रतिभा की सामर्थ्य इसी में है कि वे कविता के रूढ़ उपादानों और प्रचलित व्यंजनाओं के प्रयोग में भी, एक सर्वथा नूतन संसार को उद्भासित कर देते हैं।
होमर तथा वाल्मीकि दोनों ही विश्व के क्लासिकी साहित्य के सिरमौर हैं।
वाल्मीकि उस स्तर के कवि हैं, जिसकी उक्तियाँ चित्र के भीतर अगणित संस्कारों को उभारकर, अर्थ के अनेक स्तरों को एक साथ झँकृत कर देती हैं।
वाल्मीकि जैसी ऊर्जा, बलशालिता और गत्यात्मकता—संस्कृत कविता में कठिनाई से मिलेगी।
संस्कृत कवियों की सुदीर्घ परंपरा, वाल्मीकि का उपजीव्यत्व तथा आदिकवित्व स्वीकार करती है।
रामायण की रचना का पूरा श्रेय वाल्मीकि को है, एक ही कवि की प्रांजल प्रतिभा की कृति होने से रामायण अधिक सुसंबद्ध रचना है, उसमें विचार दर्शन तथा काव्य वैभव की अन्विति अधिक है।
वाल्मीकि की तुलना में कालिदास का समाज संकुचित है, वे नागरक संस्कृति के कवि है।
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‘उपमाकालिदासस्य...’ के बावज़ूद सौ में निन्यानवे उपमाओं को कालिदास ने वाल्मीकि से प्राप्त किया है।
कालिदास भी व्यंजना के महान कवि हैं; पर उनकी व्यंजनाएँ इतनी पैनी और सधी हुई नहीं हैं, जितनी वाल्मीकि की।