हिंदी ने जिनकी ज़िंदगी बदल दी—मारिया नेज्यैशी
वह दिल्ली के सर्द जाड़ों की कोई आम सुबह ही थी जब जनपथ स्थित हंगेरियन सूचना एवं सांस्कृतिक केंद्र की जनसंपर्क अधिकारी हरलीन अहलूवालिया का फ़ोन आया। हरलीन मुझे हंगरी की एक अँग्रेज़ हिंदी महिला विद्वान से मिलवाना चाहती थीं, जिन्हें हिंदी में किए गए उनके
जय प्रकाश पांडेय
डाकिए की कहानी, कँवरसिंह की ज़ुबानी
शिमला की माल रोड पर जनरल पोस्ट ऑफ़िस है। उसी पोस्ट ऑफ़िस के एक कमरे में डाक छाँटने का काम चल रहा है। सुबह के 11:30 बजे हैं, खिड़की से गुनगुनी धूप छनकर आ रही है। इस धूप का मज़ा लेते हुए दो पैकर और तीन महिला डाकिया फटाफट डाक छाँटने का काम कर रहे हैं। वहीं
प्रतिमा शर्मा
संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया : धनराज
हॉकी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी धनराज पिल्लै जब पैतींस वर्ष के हो गए, उनका एक साक्षात्कार विनीता पांडेय ने लिया था। इस साक्षात्कार का संपादित अंश यहाँ दिया जा रहा है। विनीता—खिड़की, पुणे की तंग गलियों से लेकर मुंबई के हीरानंदानी पवई कॉम्प्लेक्स तक आपका सफ़र
विनिता पांडेय
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