चिट्ठियों में यूरोप
22 मार्च 89
यूगोस्लाविया, नेविसाद
प्रिय नीलू, शेरू, ककू, पुत्रक और तुम सबकी मम्मी
तुम सबको ख़ूब प्यार।
आज यहाँ पहुँचे एक हफ़्ता हो गया। मौसम अच्छा चल रहा है। यहाँ बसंत आ रहा है। सारे पेड़ नंगे खड़े हैं; एक अपनी विद्या जैसा पेड़ है जो हरा है, एक