ज़ुबैर सैफ़ी के बेला
उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत
हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य हैं। मुझे याद पड़ता है कि एक प्रोफ़ेसर-सज्जन ने अपने जन्मदिन पर अपने शोधार्थी से
हिंदी के चर्चित घड़ी-प्रसंग की घड़ी बंद होने के बाद...
घड़ी तो सब ही पहनते हैं। कई सौ सालों पहले जब पीटर हेनलेन ने पहली घड़ी ईजाद की होगी, तो उसके बाप ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये इतनी ज़रूरी चीज़ साबित होगी कि दुनिया हिल जाएगी। दानिशमंद लोग कहते
वालिद के नाम एक ख़त
प्यारे अब्बा! मैं जानता हूँ कि मैं इस तहरीर के पहले लफ़्ज़ को आपको पुकारने के लिए इस्तेमाल करने के लायक़ नहीं हूँ। मैं यह भी जानता हूँ कि मैंने होश सँभालने से लेकर अब तक आपको सिर्फ़ दुख पहुँचाया ह