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मनुष्य पर कवितांश

एक नीच व्यक्ति

जितनी पीड़ा स्वयं अपने आपको देता है

उतना ताप देना

किसी दुश्मन को भी संभव नही

तिरुवल्लुवर

ख़ुद भी लाभ उठाए बिना

और योग्य व्यक्तियों को दान दिए बग़ैर

जीने वाला व्यक्ति

संपत्ति के लिए रोग बन जाता है

तिरुवल्लुवर

सज्जनों की सभा में

मुर्ख का प्रवेश करना इस प्रकार है—

जैसे साफ-सुथरी शय्या पर

बिना धोये पैर रखना

तिरुवल्लुवर

मनुष्य का मोह

जिस-जिससे छूटेगा

वह उनसे होने वाले

दु:ख से सदा मुक्त रहेगा

तिरुवल्लुवर

जिनकी कीर्ति अक्षुण्ण है

उन्हीं मनुष्य का जीवन है श्लाघनीय

जिनका जीवन कीर्तिरहित है

वे तो मृतक समान हैं

तिरुवल्लुवर