जैसे उपन्यास का सच संसार के सच से ज़्यादा सच्चा होता है, उसी तरह हमारा पुराण-सत्य, हमारा मिथक-सत्य—आपके इतिहास-सत्य से कहीं ज़्यादा ऊँचा है।
इतिहास का वह भी अंश जो चेतना-सम्पन्न होता है, आगे चलकर मिथकीय आकृति ले लेता है जैसे गौतम बुद्ध या शिवाजी अथवा अपने युग में लेनिन और गाँधी।
राम और कृष्ण के मिथक संकल्प और संवेग के चैतन्य स्रोत हैं।
मनु हमारे ऐतिहासिक तिथि क्रम से परे की वस्तु है।
इतिहास की आदिम विद्या बहुत पुरानी है। आद्य मिथक भी एक तरह के इतिहास हैं, यदि उन्हें विशेष दृष्टि से समझने की कोशिश की जाए।