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एनसीईआरटी कक्षा-6 पाठ्यक्रम के दोहे

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

पानी गए ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में 'विनम्रता' से है। मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे के बिना संसार का अस्तित्व नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है उसी तरह विनम्रता के बिना व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं हो सकता। मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।

रहीम

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

रहीम कहते हैं कि बड़ी या मँहगी वस्तु हाथ लगने पर छोटी या सस्ती वस्तु का मूल्य कम नहीं हो जाता। हर वस्तु का अपना महत्त्व होता है। जहाँ सूई काम आती है, वहाँ सूई से ही काम सधेगा; तलवार से नहीं।

रहीम

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।

टूटे से फिर मिले, मिले गाँठ परिजाय॥

रहीम कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है। इसे झटका देकर तोड़ना यानी ख़त्म करना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा (बंधन) एक बार टूट जाता है तो फिर इसे जोड़ना कठिन होता है और यदि जुड़ भी जाए तो टूटे हुए धागों (संबंधों) के बीच में गाँठ पड़ जाती है।

रहीम

कहि रहीम संपत्ति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत॥

रहीम

रहिमन बिपदाहू भली, जो थोरे दिन होय।

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कपाल॥

रहीम

तरुवर फल नहिं खात हैं, सरवर पियहिं पान।

कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

रहीम कहते हैं कि परोपकारी लोग परहित के लिए ही संपत्ति को संचित करते हैं। जैसे वृक्ष फलों का भक्षण नहीं करते हैं और ना ही सरोवर जल पीते हैं बल्कि इनकी सृजित संपत्ति दूसरों के काम ही आती है।

रहीम

रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल।

आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल॥

रहीम

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