सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के उद्धरण


जितने भी धर्म प्रचारित किए गए, सब अपनी व्यापकता तथा सहृदयता के बल पर फैले।
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साथ निवास करने वाले दुष्टों में जल तथा कमल के समान मित्रता का अभाव ही रहता है। सज्जनों के दूर रहने पर भी कुमुद और चंद्रमा के समान प्रेम होता है।

घी से सिक्त होने पर थोड़ी सी भी अग्नि धधक उठती है। एक बीज हज़ारों बीजों में परिणत हो जाता है। उत्थान और पतन बहुत अधिक हो सकता है। अतः मनुष्य को अपने थोड़े से धन की भी अवमानना नहीं करना चाहिए।
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पेट में जब तक दीनता के पिल्ले कूँ-कूँ करते रहेंगे, मनुष्य को अपनी पहचान अपने आप न होगी, वह किसी ऊँची बात का अर्थ नहीं समझ सकता।
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