राजेंद्र देथा के बेला
'बाद मरने के मेरे घर से यह सामाँ निकला...'
यह दो अक्टूबर की एक ठीक-ठाक गर्मी वाली दोपहर है। दफ़्तर का अवकाश है। नायकों का होना अभी इतना बचा हुआ है कि पूँजी के चंगुल में फँसा यह महादेश छुट्टी घोषित करता रहता है, इसलिए आज मेरी भी छुट्टी है। मेर
सरकारी नौकर, टीका और अन्य कहानियाँ
दोस्तो! हम पाक-विस्थापितों में टीके के रिवाज का तारीख़ी सिलसिला कब शुरू हुआ, मेरे पास इसकी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है। मेरे परिवार में एक ताऊ ज़रूर हैं, जो बात-बात पर पारिवारिक मौक़ों में यह कहते हु
मोटरसाइकिलों का लोक वाया इन्फ़्लुएंसर
सोशल मीडिया के आला कर्मचारियों ने जब जनता के लिए रील्स फ़ॉर्मेट संभव किया, तब उन्हें मालूम न होगा कि लोक के गणराज में रील्स का क्या हाल होगा! उन्हें क़तई पता नहीं था कि इसी रील्स से सुदूर बाड़मेर के पत
‘बिना शिकायत के सहना, एकमात्र सबक़ है जो हमें इस जीवन में सीखना है।’
जैसलमेर 10 मई 2023 आज जैसलमेर आया हूँ। अपनी भुआ के यहाँ। बचपन में यहाँ कुछ अधिक आना होता था। अब उतना नहीं रहा। दुपहर में साथी के साथ हमीरा जाना हुआ। दिवंगत साकर ख़ान के घर। जीवन में लय का बहुत मह