
हर एक को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ का हुक्म मानना चाहिए। अंतरात्मा की आवाज़ न सुन सकें तो जैसा ठीक समझें वैसा करना उचित होगा, लेकिन किसी भी सूरत में दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए।
-
संबंधित विषय : आत्म-चिंतनऔर 1 अन्य


जो पूर्णसत्य रूप है; वह किसी अन्य के नियम से नहीं बँधता है, उसका अपना नियम अपने में ही निहित रहता है।

क्या आपने स्वयं की तुलना किसी व्यक्ति या वस्तु से किए बिना कभी जीने की कोशिश की है? तब आप क्या रह जाते हैं? तब आप जो हैं, वही हैं जो है।

अपनी ऊर्जा की रक्षा करो—पूरी ताकत से।

जो लोग अपने आत्म-सम्मान को नष्ट करते हैं, जो स्वयं को मदद की अनुमति नहीं देते, वे धीरे-धीरे मरते चले जाते हैं।