
जीवट की भाषा उनके बीच होती हैऔर जैसे-जैसे उससे हम दूर होते जाते हैं—चाहे वे तेलगू बोलने वाले हों, चाहे वे तमिल बोलने वाले हों, चाहे हिंदी बोलने वाले हों—भाषा मरती जाती है। लेकिन भाषा का वह मूल रूप, स्त्रियों और श्रमिकों के बीच जीवित रहता है। वे ही भाषा को बनाते हैं। इसलिए भाषा मूलतः जीवित रूप में वहाँ से प्राप्त हुई।

आम बोलचाल की भाषा से पात्रों की भाषा एकदम अलग नहीं हो सकती। हुई तो पाठक पात्र से एकात्म नहीं होंगे।