सामान्य जीवन-प्रसंगों का कहानीकार
विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यासों वाली अपेक्षाओं के साथ उनकी कहानियाँ पढ़ने पर किसी को भी कुछ निराशा हो सकती है। कहानियाँ वैसे भी उन्होंने अधिक नहीं लिखी हैं। जो लिखी हैं, उनमें न तो मध्यवर्गीय विडंबनाओ
हिंदी का अपना पहला ‘नेटिव जीनियस’
विनोद कुमार शुक्ल के मुझ सरीखे पुराने पाठक और उनके लगातार बढ़ते जा रहे नए पाठक; सबसे पहले तो यह समझ जाते हैं कि उनका यह कवि-गल्पकार सिर्फ़ ‘अच्छा’ नहीं है, बल्कि उसे ऐसा कहना और मानना उसका और अपना अप
‘नहीं होने’ में क्या देखते हैं
विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता है—‘आदिम रंग’। पहली पंक्ति प्रश्नवाचक है—आदिम रंग आदिम मनुष्य ने क्या देखा था? (प्रश्नवाचक चिह्न कवि की पंक्ति में नहीं है) फिर वह अनुमान या कल्पना करते हैं—सूर्यादय या