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बोध पर उद्धरण

यह धारणा कि काव्य व्यवहार का बाधक है, उसके अनुशीलन से अकर्मण्यता आती है, ठीक नहीं। कविता तो भावप्रसार द्वारा कर्मण्य के लिए कर्मक्षेत्र का और विस्तार कर देती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

जो मन पूर्वाग्रह तथा द्वंद्व से मुक्त है वही देख सकता है कि सत्य क्या है।

जे. कृष्णमूर्ति