गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनंद की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतख़ाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ
इन्दुमती अपने बूढ़े पिता के साथ विंध्याचल के घने जंगल में रहती थी। जबसे उसके पिता वहाँ पर कुटी बनाकर रहने लगे, तब से वह बराबर उन्हीं के साथ रही; न जंगल के बाहर निकली, न किसी दूसरे का मुँह देख सकी। उसकी अवस्था चार-पाँच वर्ष की थी जबकि उसकी माता का परलोकवास
बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीक़े सोचते रहते थे। अकबर के एक ख़ास दरबारी ख़्वाजा सरा को अपनी
आख़िर को लैला की माँ ने मंज़ूर कर लिया, कहा— “अब लैला को मजनू के हाथ ही सौंप दूँगी!” सुनने वाले इस समाचार से ख़ुश हो गए। लोगों ने लैला की माँ को बधाइयाँ दीं। मजनू बिचारा कितनी मुद्दत से लैला के पीछे तड़प रहा था। आशिक़ी के कारण इस दुनिया और उस दुनिया
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जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली
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