संत पीपा के दोहे
उठ भाग्यो वाराणसी, न्हायो गंग हजार।
पीपा वे जन उत्तम घणा, जिण राम कयो इकबार॥
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सगुण मीठौ खांड सौ, निरगुण कड़वौ नीम।
पीपा गुरु जो परसदे, निरभ्रम होकर जीम॥
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पीपा पाप न कीजिये, अलगौ रहिये आप।
करणी जासी आपणी, कुण बैटौ कुण बाप॥
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जीव मारि जीमण कर, खाताँ करै बखाण।
पीपा परतखि देखि ले, थांली माँहि मसाण॥
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हाथाँ सो उधम करै, मुख सों उचरे नाम।
पीपा साधां रो धरम, रोम रमारे राम॥
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पीपा भजतां राम ने, बस तेरस अर तीज।
भूमि पड्यां ही ऊगसी, उल्टो पल्टो बीज॥
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पग धोऊ उण देव का, जो घालि गुरु घाट।
पीपा तिनकू ना गिणूं, जिणरे मठ अर ठाठ॥
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सुआरथ के सब मीत रे, पग-पग विपद बढ़ाय।
पीपा गुरु उपदेश बिनुं, साँच न जान्यो जाय॥
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नमूं तो गुरु अर राम कुँ, भव इतराते पार।
पीपा नमें न आन कुँ, सुवारथ रो संसार॥
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राम नाम जियां जाणिया, पकड़ गुरु की धार।
पीपा पल में परसिया, खुलग्यो मुक्ति द्वार॥
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पीपा माया सब कथी, माया तो अणतोल।
कयां राम के नेहड़े, कयां राम के पोल॥
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पीपा कहत विचार हिरदै, राम सरिस नहिं आन।
जा सूँ कृपा उपजै हिरदै, विशद विवेक सुजान॥
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स्वारथ के सब ही सगा, जिनसो विपद न जाय।
पीपा गुरु उपदेश बिनु, राम न जान्यो जाय॥
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पीपा पी पथ निरखता, आँखा झाँई पड़ी।
अभी पी अडग अलख लखूँ, अडिकूं घड़ी-घड़ी॥
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निज को जो चाहे सुखी, हुवो चहै दुख हीन।
तो भज ले श्रीराम को, पीपा रहै न दीन॥
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साँच मंत्र तो राम भज, और सभी कुछ कूड़।
पीपा वेद पुराण पढूं, क्यों बन्यो रहे मूढ॥
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कुंजा ज्यों कुरल्या करै, बिरही जणा को जीव।
पेपा आगि न बुझ सके, जब लग मिले न पीव॥
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पीपा राम प्रताप ते, सागर जल के माँह।
पत्थर तिरे तरूपांत ज्यूँ, नर की बातें कांह॥
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स्वामी होणौ सहज है, दुर्लभ होणौं दास।
पीपा हरि के नाम बिन, कटै न जम की फाँस॥
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सतगुरु जी री खोहड़ी, लागी म्हारे अंग।
पीपा जुड़ग्या पी लगन, टूटी भरम तरंग॥
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पीपा हरि प्रसाद तें, पायो ज्ञान अनंत।
भव सागर ने पार कर, दुख को आयो अंत॥
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सुमिरण साँचो छोड़ के, अंतर मन ही होय।
पीपा तन सुध बिसरे, प्रेम छलै न कोय॥
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निज सुत को माता पिता, करे भलो उपदेस।
पीपा एकल राम बिनु, मिटै न जग रौ क्लेस॥
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पीपा के पिंजरि बस्यो, रामानंद को रूप।
सबै अंधेरा मिटि गया, देख्या रतन अनूप॥
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लघुता प्रभुता जो गिणै, गुरु से विनसे भरम।
सत सबद ने राखलूँ, पीपा सिख रो धरम॥
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पीपा हरि सो गुरु बिना, होत न सबद विवेक।
ज्ञान रहित अज्ञान सुत, कठिन कुमन की टेक॥
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उग्यो बिरहा जिण हिवरे, रोमां माइन राम।
चातक ज्यूं पी नै रटै, पीपा आठहुँ धाम॥
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पीपा भज श्रीराम को, परिहर अखिल विचार।
आजस तज या मनुज तनु, क्यों गिरता संसार॥
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साँचा साँई परचिया, सतगुरु संत सहार।
पीपा प्रणवै वाहि को, जो सबको करतार॥
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राम नाम सुमरत भये, रंक बँक बजरंग।
ध्रुव प्रह्लाद गीधगज, तजकुल को परसंग॥
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पीपा देर न कीजिये, भज लीजे हरि नाम।
कुण जाणै क्या होवसी, छूट जाएँगे प्रान॥
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पीपा देख विचार हिय, है यह मतो प्रवीन।
समचित रह संसार में, राम रसायन लीन॥
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पीपा माया नागणी, मन में धरौ बिसाल।
जिन जिन दूध परोसियो, उण रो करियो नास॥
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माला मणका क्या गिनूं, यह तो सुमरण धाम।
पीपा को हरि सुमरै, पीपा सुमरे राम॥
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बण्यो बणायो रहे सदा, काटत है नहिं शूल।
अरुण वरुण क्या काम को, बास बिना को फूल॥
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पीपा मन हरख्यौं फिरै, समझे नहीं गंवार।
राम बिना जाणै नहीं, पावाँ तणा पहार॥
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भलौ बुरौ सब एक है, जाके आदि न अंत।
जगहित जो हरि को सैवये, पीपा सोई संत॥
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जातां भव मझधार में, आयौ दुख रो अंत।
पीपा गुरु परसाद ते, पायो पिया अनंत॥
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पीपा गुरु हरि एक है, इणमां भेद न भूल।
जै इण में अंतर करै, तिन के हिरदै सूल॥
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भजत दुख मोचन करण, हरण सफल जंजाल।
पीपा क्यों नहिं भजत नर, निस दिन राम कपाल॥
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जिणरो रूप न रंग अंग, करण मरण अर जीव।
रंग बास बन ज्यों रमै, अस पीपे को जीव॥
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पीपा जिनके मन कपट, तन पर ऊजरौ भेस।
तिन को मुख कारौ करो, संत जनां का लेख॥
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पीपा माया नारी परहरै, चित तूं धरै उतारि।
ते नर गोरखनाथ ज्यूँ, अमर भया संसारि॥
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पीपा दास कहाबो कठिन है, मन नहिं छांड़े मानि।
सतगुरू सूँ परचौ नही, कलियुग लागौ कानि॥
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सतगुरू साँचो जोहरी, परसे ज्ञान कसौट।
पीपा सुधो ई करे, दे अणभौरी चोट॥
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पीपा थौड़े अंतरै, घणी बिगूती लोई।
महामाई मान्या घणा, तार यौ नाहीं कोई॥
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पीपा पारस परसताँ, लोहा कंचन होई।
सिद्ध के कांठे बैसताँ, साधक भी सिद्ध होई॥
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पीपा सिख दे जगत कूं, काठे सब रो बाँक।
पेख्या पलक उघाड़ कै, अपणौ अंतर झाँक॥
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पीपा मणको काठ रो, बीच पिरोवे सूत।
सुमरणी निरदोषणी, के रण हार कपूत॥
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पीपा परनारी परतखि छुरी, बिरला बंचै कोई।
नाँ पेटि संचारिऐ, सो सेना की होई॥
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere