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चैतन्य महाप्रभु

1486 - 1534 | पश्चिम बंगाल

चैतन्य महाप्रभु के उद्धरण

मुझमें भगवान् का प्रेम है, श्रवणादि भक्ति है, वैष्णवों का योग है, ज्ञान है, शुभ कर्म है, और कितने आश्चर्य की बात है कि उत्तम गति भी नहीं है, फिर भी हे भगवान्! हीन अर्थ को भी उत्तम बना देने वाले आपके विषय में आबद्धमूला मेरी आशा ही मुझको प्रयत्नशील बनाए रहती है।

हे जगत्पति! मुझे धन की कामना है, जन की,न सुंदरी की और कविता की। हे प्रभु! मेरी कामना तो यह है कि जन्म-जन्म में आपकी अहैतुकी भक्ति करता रहूँ।

हे भगवान्! आपने अपने बहुत नाम प्रकट किए हैं, जिनमें आपने अपनी सब शक्ति भर दी है और आपने उनके स्मरण के लिए कोई काल भी सीमित नहीं किए हैं। आपकी ऐसी कृपा है परंतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य है कि इस जीवन में मुझमें कोई भक्ति नहीं है।

हे प्रभु! कब ऐसा होगा कि आपका नाम लेने में मेरे मुख पर अश्रुधारा बहने लगे, वाणी गद्गद होकर रुँध जाए और सारा शरीर पुलकित होकर रोमांचित हो जाए?

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